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ग्रीन ग्रुप की महिलाओं को देखते ही भाग जाते हैं शराबी और जुआरी
August 1, 2017
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वाराणसी में ग्रीन ग्रुप महिला सशक्तिकरण का दूसरा नाम है. ग्रामीण महिलाओं का ये समूह गाँव-गाँव जाकर नशा करने वालों के खिलाफ मुहिम चलाता है.
इन महिलाओं का खौफ अब इतना हो गया है कि इनको देखते ही जुआ खेल रहे या शराब पी रहे पुरुष अब डरने लगे हैं.
अधिकारीयों के पास समस्या ले जाने से लेकर ग्राम प्रधान के साथ मिलकर चौपाल लगाना, दहेज प्रथा, बाल विवाह, वृक्षारोपण, स्वच्छता जैसे मुद्दों को लेकर भी ये गम्भीरता से काम कर रही हैं.
कई गांवों में ग्रीन ग्रुप के विस्तार से निरक्षर महिलाएं अबला से सबला बन वह कर दिखाने के लिए आगे आई हैं, जो कानून के जरिए भी नहीं हो सका था.
ग्रामीण इलाकों में जुआ और नशा रोकने की पहल बीएचयू, काशी विद्यापीठ, जेएनयू, और डीयू के छात्र-छात्राओं ने की है. कैंपस से निकल छात्रों की टोलियां बिगुल बजाने गांव-गांव पहुंचने से चूल्हे-चौके तक सिमटी रहने वाली महिलाएं अब जुआ-नशा तथा अन्य सामाजिक बुराइयों पर सर्जिकल स्ट्राइक को आगे आ रही हैं.
25 महिलाओं द्वारा बनाये गये ग्रीन ग्रुप में तीन महीने के प्रशिक्षण के बाद अब ये महिलाएं अपने अधिकार कर्तव्य के प्रति जागरूक हो चुकी हैं.
इस ग्रुप की महिलाएं प्रशिक्षण के पहले तक निरक्षर थीं लेकिन अब साक्षर हैं और अपने अधिकार के प्रति सचेत भी.
छात्रों की संस्था ‘होप’ के बैनर तले भद्रासी, रामसीपुर ओर जगरदेवपुर गांव की 25-25 महिलाओं को ट्रेनिंग देकर ग्रीन ग्रुप का गठन किया गया.
ग्रीन ग्रुप की महिलाओं को मानसिक रूप से तैयार करने के साथ तीन महीने तक अक्षर ज्ञान से लेकर जूडो-कराटे तक की ट्रेनिंग दी गई है.
इन्हें ग्रीन ड्रेस के जरिए अलग पहचान दी गई है तो पुलिस विभाग की ओर से बकायदा ‘पुलिस मित्र’ कार्ड भी जारी किया गया.
होप समूह से विश्वविद्यालयों के प्रोफ़ेसर भी जुड़े हैं, जो समय समय पर गावों में सभाएं आयोजित करते हैं और जरूरत पड़ने पर छात्रों की मदद करते हैं. चूँकि समूह के कामों का खर्च छात्रों के जेब खर्च से ही चलता है इसलिए इनका अभियान अभी कुछ गाँवों तक सीमित है.
इनका हर कार्य अहिंसा को केंद्र में रखकर होता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनके काम को सरहाने के साथ डॉक्यूमेंट्री भी तैयार हुई है.
डॉक्यूमेंट्री के लिए अमेरिका निवासी चेस क्रेंजे ने पहल की है. उनके द्वारा देउरा गाव के ग्रीन ग्रुप पर डॉक्यूमेंट्री तैयार की गई क्रेंजे का कहना है कि डॉक्यूमेंट्री में यह दिखाया जाएगा कि किस तरह ग्रामीण महिलाएं अपने गाव में नशा और जुआ के खिलाफ पुरुषों को जागरूक कर रही हैं. लोगों को यह भी दिखाया जाएगा कि तमाम परेशानियों के बावजूद समाजहित में कैसे काम किया जाता है.
ग्रीन ग्रुप की मांग अब सिर्फ बनारस में ही नहीं बल्कि हर जगह हैं. घरेलू हिंसा से महिलाएं पीड़ित न हो इसलिए इन्हें खुद उन्हें आगे आना होगा.
आपको बतादें की पिछले विधान सभा चुनाव में इन महिलाओं की मदद से मतदान में 10 प्रतिशत इजाफा हुआ था.संगठन की महिलाएं ने गांव से शहर में घर- घर जाकर सोहर गीत गाते हुए मतदान के लिए लोगों को जागरूक किया था.
(Pic Credit:The better india,Patrika)
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