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अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल
August 8, 2017
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भारत आज एक आज़ाद देश और दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. दुनियाभर के लोग आज भारत की ओर उम्मीदों से देख रहे हैं.
आज का नौजवान, आगे बढ़ता भारत कभी एक पराधीन देश था जिस पर अंग्रेज़ों की हकूमत थी.
भारत की आज़ादी के लिए कई गंभीर प्रयास हुए इनमें से सबसे अहम अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन के आज 75 साल पूरे हो रहे हैं.
महात्मा गांधी के नेतृत्व में 9 अगस्त 1942 को ऐतिहासिक अंग्रेज़ों भारत छोड़ों आंदोलन शुरू हुआ था.
महात्मा गांधी के नेतृत्व में देशभर में भारत के लोगों ने ये आंदोलन शुरू किया था. भारत की आज़ादी के संघर्ष के जो दो सबसे अहम पड़ाव हैं उनमें 1857 की क्रांति के बाद क्विट इंडिया या भारत छोड़ो आंदोलन सबसे अहम है.
इस आंदोलन को भारत में अंग्रेज़ों के शासन के ताबूत में आखिरी कील भी माना जाता है.
दूसरा विश्व युद्ध
दरअसल 1939 में यूरोप दूसरे विश्व युद्ध की चपेट में आ चुका था. भारत पर शासन चला रहे ब्रिटेन और जर्मनी की सेनाएं दुनियाभर में कई मोर्चों पर आमने–सामने थी.
इसी लड़ाई में भारतीय नेताओं की राय लिए बिना ही ब्रिटेन ने 1942 में भारत को भी शामिल कर लिया.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता युद्ध में किसी भी पक्ष में शामिल हुए बिना तटस्थ रहना चाहते थे.
कांग्रेस के नेताओं ने जब ब्रितानी सरकार के इस फ़ैसले का विरोध किया तो ब्रिटेन से भारतीय नेताओं से बात करने के लिए क्रिप्स मिशन भारत आया था. लेकिन ये मिशन भारतीय नेताओं को ब्रितानी शासन के साथ आने के लिए मनाने में नाकाम रहा.
उस समय की परिस्थियां भी एक बड़े आंदोलन के अनूरूप थीं. जापान सिंगापुर, मलाया, और बर्मा पर क़ब्ज़ा कर भारत की ओर बढ़ रहा था. युद्ध के कारण रोज़मर्रा की ज़रूरतों की चीज़ों की क़ीमत बेतहाशा बढ़ती जा रही थी. जनता में ब्रितानी सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ रहा था.
जापान की बढ़ती ताक़त को देखकर 05 जुलाई 1942 को गांधी जी ने हरिजन में लिखा, “अंग्रेज़ों, भारत को जापान के लिए मत छोड़ो, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ.”
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का की बैठक बम्बई के ऐतिहासकि ग्वालिया टैंक मैदान में हुई और महात्मा गांधी के भारत छोड़ो प्रस्ताव को कुछ संशोधनों के साथ 8 अगस्त 1942 को स्वीकार कर लिया गया और 9 अगस्त से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई.
गांधी जी के निर्देश
गांधीजी ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को आंदोलन के दौरान मानने के लिए कुछ निर्देश भी दिए थे. ये निर्देश थे–
- सरकारी सेवकः त्यागपत्र नहीं दें लेकिन कांग्रेस से अपनी राजभक्ति घोषित कर दें.
- सैनिकः सेना से त्यागपत्र नहीं दें किंतु अपने सहयोगियों एवं भारतीयों पर गोली नहीं चलायें.
- छात्रः यदि आत्म–विश्वास की भावना हो तो, शिक्षण संस्थाओं में जाना बंद कर दें तथा पढ़ाई छोड़ दें.
- कृषकः यदि जमींदार सरकार विरोधी हों तो पारस्परिक सहमति के आधार पर तय किया गया लगान अदा करते रहें किंतु यदि जमींदार सरकार समर्थक हो तो लगान अदा करना बंद कर दें.
- राजे–महाराजेः जनता को सहयोग करें तथा अपनी प्रजा की संप्रभुता को स्वीकार करें.
- देशी रियासतों के लोगः शासकों का सहयोग तभी करें जब वे सरकार विरोधी हों तथा सभी स्वयं को राष्ट्र का एक अंग घोषित करें.
करो या मरो
महात्मा गांधी ने अपना ऐतिहासिक वचन करो या मरो भी इसी आंदोलन के दौरान दिया था. मुंबई के कांग्रेस अधिवेशन में दिए गए इस वचन का अर्थ था कि भारतीय लोग अंग्रेज़ों से अपनी आज़ादी के लिए हर संभव प्रयत्न करें.
वहीं नौ अगस्त की सुबह अंग्रेज़ों ने ऑपरेशन जीरो ऑवर शुरू किया जिसके तहत कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया. आंदोलन के दौरान देशभर में एक लाख से अधिक लोग गिरफ्तार किए गए.
महात्मा गांधी ने दस फरवरी 1943 को अपना 21 दिनों का उपवास शुरू किया था. लेकिन उपवास के तेरहवें दिन ही उनकी तबियत बहुत ज़्यादा खराब हो गई थी. अंग्रेज़ी सरकार ने महात्मा गांधी के अनशन को तुड़वाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. इस बारे में इतिहासकारों का मत है कि अंग्रेज़ी सरकार चाहती थी कि महात्मा गांधी उपवास के दौरान ही मर जाएं.
ये आंदोलन भले ही भारत को उस समय आज़ाद नहीं करवा पाया लेकिन इस आंदोलन ने भारत की आज़ादी की नींव तैयार कर दी थी. अंग्रेज़ों को अहसास हो गया था कि उन्होंने भारत पर शासन का अधिकार खो दिया है.
भारत छोड़ो आंदोलन को भारतीय आज़ादी का अंतिम महान प्रयास भी कहा जाता है.
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