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राम रहीम दोषीः इस आग का ज़िम्मेदार कौन, जवाबदेही किसकी?
August 25, 2017
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पंचकूला में विशेष सीबीआई अदालत ने बेहद तनावपूर्ण हालात में धर्मगुरू बाबा गुरमीत राम रहीम को बलात्कार का दोषी क़रार दिया.
बलात्कार का दोषी क़रार दिए जाने के बाद अदालत ने बाबा गुरमीत राम रहीम को पुलिस हिरासत में भेज दिया जहां से उन्हें जेल भेजा जाएगा. राम रहीम को सज़ा २८ अगस्त को सुनाई जाएगी.
लेकिन राम रहीम के भक्तों ने अदालत के फ़ैसले के बाद जो तांडव किया है उसका अंदाज़ा न पुलिस लगा सकी, न सरकार और न ही मीडिया.
And this one is very near to my home 😣😣 trains in #AnandVihar railway station is burning #RamRahimVerdict pic.twitter.com/b9hZFubuWY
— Suchi Soundlover (@suchiseetharam) August 25, 2017
ये रिपोर्ट लिखे जाने तक पंचकूला में हुई हिंसा में तेरह लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. दो सौ से ज़्यादा घायल हैं. दर्जनों सरकारी दफ़्तरों और सैकड़ों गाड़ियों में आग लगाई जा चुकी है. आम लोगों के घरों में भीड़ घुस गई है.
पंजाब और हरयाणा के कई ज़िलों में बाज़ार बंद करा दिए गए हैं. कर्फ्यू जैसा माहौल है. चारो और अफरातफरी और असमंजस का माहौल है.
Panchkula burns as #RamRahimSingh taken in to custody. Yet another failure of @BJP4India 's @mlkhattar Govt in Haryana. pic.twitter.com/EV5gJw1oXj
— DrVatsa (@DocVatsa) August 25, 2017
भीड़ ने मीडिया को भी निशाना बनाया है. टीवी मीडिया पर ऐसे वीडियो प्रसारित हुए हैं जिनमें बेकाबू भीड़ सुरक्षा बलों को खदेड़ती दिख रही है.
इस बीच देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह, हरयाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत तमाम नेताओं ने शांति बनाए रखने की अपील की है.
लेकिन सवाल ये उठता है कि जो हुआ है, जो संपत्तियां और जानें ज़ाया हुई हैं उसका ज़िम्मेदार कौन है? क्या पंचकूला में जो हालात बने उसमें प्रशासन और सरकार की भी भूमिका है.
Haryana/central govt needs proof?how murderous crowds rule roads in Panchkula/Haryana sample this. See 1 frame-listen @IndiaToday @PMOIndia pic.twitter.com/nVTr6gZ6nd
— rahul shrivastava (@Rahulshrivstv) August 25, 2017
जब कई दिनों से बाबा राम रहीम के समर्थक इकट्ठा हो रहे थे तब प्रशासन ने एहतियात के तौर पर क़दम क्यों नहीं उठाए.
भीड़ इकट्ठा हो रही थी. और भीड़ के पास लाठी, डंडे और पत्थर भी थे तब भी मंशा को क्यों नहीं समझा गया?
ये सब फौरी सवाल हैं. हालात के बाद के सवाल हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि आम पढ़े लिखे लोग हिंसक भीड़ कैसे बन गए.
आस्थावन लोग हिंसा पर उतारू कैसे हो गए. जो धर्मगुरू अपने नाम के साथ इंसान शब्द लगाते हुएं उनके भक्तों ने इंसानियत को छोड़कर हैवानियत क्यों अख़्यितार कर ली.
ऐसा क्यों हो रहा है कि नया भारत हिंसक भीड़ का देश बनता जा रहा है. भीड़ जो कभी किसी निर्दोष को गाय ले जाने के शक़ में मार देती है तो कभी धर्मगुरू के लिए पूरे शहर को बंधक बना लेती है.
ऐसा हो क्यों रहा है? क्या हमारी सामाजिक और राजनीतिक संरचना में ही कोई बड़ी खामी आ गई है? क्या इसकी वजह हमारी आज के दौर की राजनीति में छिपी है?
बाबा के पास भक्तों की भीड़ है. ये भीड़ चुनावों में मतदान भी करती है और अपने मतदान से हार जीत तय कर सकती है.
क्या भीड़ के पास जो चुनावी हार जीत तय करने की ताक़त है वो भी इस हिंसा की वजह है.
सवाल ये भी पूछा जा रहा है कि क्या भीड़ हिंसक हुई या उसे हिंसक हो जाने दिया गया. जो हालात हैं उनमें सवाल बहुत हैं. लेकिन जवाब किसी के पास नहीं.
या शायद किसी की जवाबदेही ही नहीं है.
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