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व्यवस्था से हताश बेटी ने की आत्महत्या, लेकिन किसी को परवाह नहीं
October 9, 2017
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उत्तर प्रदेश के मथुरा में एक 19 साल की बेटी ने क़ानून व्यवस्था से हताश होकर आत्महत्या कर ली.
राखी के माता पिता की उनके निर्माणाधीन घर में मार्च 2017 में हत्या कर दी गई थी.
अपने माता-पिता के क़ातिलों को गिरफ़्तार करवाने के लिए राखी ने हर संभव प्रयास किया.
वो धरनें पर बैठीं, अर्ज़ियां लिखीं, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर गुहार लगाई. कहीं से कोई मदद न मिलने से हताश होकर उसने अपना वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर भी डाला.
लेकिन राखी के माता पिता के क़ातिलों को पकड़ा नहीं जा सका.
राखी व्यवस्था से इतनी हताश हो गई कि उसने अपनी जान दे दी.
आज एक और कहानी का दुःखद अंत ,2-4 दिन या एक हफ्ते लोगों की जुबान पर ये घटना एक दो दिन फेसबुक पर एक कैंडल मार्च और बस सब …
अपने सुसाइड नोट में राखी ने लिखा है, “सरकार की ज़िम्मेदारी बनती हैं.”
राखी को अपनी छोटी बहन और छोटे भाई की चिंता भी सता रही थी. राखी को इस बात का भी दुख था कि सरकार या प्रशासन का कोई नुमाइंदा उसके घर नहीं आया. राखी तो चली गई है लेकिन कई गंभीर सवाल छोड़ गई है.
सरकार और प्रशासन राखी को न्याय देने में नाकाम रहे हैं. नागरिकों की सुरक्षा और अपराध होने की स्थिति में उन्हें न्याय देना राज्य की ज़िम्मेदारी है. लेकिन राज्य न राखी के परिवार को सुरक्षा ही दे सका और न ही न्याय.
न्याय की उम्मीद में हर चौखट पर दस्तक देनी वाली राखी इतनी हताश कैसे हो गई कि उसने अपनी जान ही दे दी? हमारी व्यवस्था की ऐसी कौन सी हक़ीक़त से उसका सामना हुआ कि उसे अपना जीवन ही व्यर्थ लगने लगा?
सुरक्षा और न्याय ये सबको चाहिए. लेकिन क्या हमारी सरकारें नागरिकों को सुरक्षा और न्याय दे पा रही हैं? या किसी एक राखी के चले जाने से हममें से किसी पर कोई फ़र्क़ पड़ता है?
चिंदी चोरों को पकड़ने पर अपनी कमर थपथपाने वाली मथुरा पुलिस ने राखी के मामले में कोई ट्वीट नहीं किया है. उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजीपी कार्यालय ने भी ज़िम्मेदारी लेते हुए कोई ट्वीट नहीं किया है. मुख्यमंत्री ने राखी की मौत पर ध्यान दिया होगा इसकी कल्पना करना ही बेमानी है.
राखी की मौत का मातम मनाने के अलावा हमारे पास क्या विकल्प है? आत्महत्या के लिए उकसाने पर मुक़दमा दर्ज किया जाता है. राखी को आत्महत्या करने के लिए किसने उकसाया, किस पर मुक़दमा दर्ज किया जाए?
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