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‘जिस कुत्ते के मुंह में हड्डी हो वो नहीं भौंकता है’
November 26, 2017
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‘द कारवां’ पत्रिका ने अपनी एक विशेष रिपोर्ट में सीबीआई के जज ब्रजगोपाल लोया की संदिग्ध मौत पर सवाल उठाए हैं.
सोहराबुद्दीन फ़र्ज़ी एनकाउंटर केस में सुनवाई कर रहे जज लोया की 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में एक शादी समारोह में संदिग्ध मौत हो गई थी.
उनकी मौत को हृदयघात बताया गया था. लेकिन अब उनके परिवार का कहना है कि लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत की जांच होनी चाहिए.
Not only is Indian media barring a few exceptions guilty of silence, it has been highly unethical in blacking out statements made on judge Loya's mysterious death from public platforms https://t.co/cuw13Om0Zx via @thewire_in
— Nagendar Sharma (@sharmanagendar) November 25, 2017
सोहराबुद्दीन फर्ज़ी एनकाउंटर मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अभियुक्त थे और उन्हें बाद में बरी कर दिया गया था.
जज लोया के परिजनों का ये भी कहना है कि हाईकोर्ट के एक जज ने जस्टिस लोया को सौ करोड़ रुपए का प्रस्ताव देकर फ़ैसला प्रभावित करने की कोशिश भी की थी.
लोया की मौत पर सवाल उठने के बाद से भारत की मुख्यधारा की मीडिया में एक अज़ीब सी ख़ामोशी है.
किसी भी बड़े अख़बार या टीवी चैनल ने इस ख़बर को प्रमुखता से प्रकाशित या प्रसारित नहीं किया है.
मीडिया की ख़ामोशी पर सवाल उठाते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने कहा, “एक जुलू कहावत है कि जिस कुत्ते के मुंह में हड्डी हो वो भौंखता नहीं है. मुख्यधारा की मीडिया बिक गई है.”
लेकिन सीबीआई के विशेष जज लोया की मौत पर सिर्फ़ मीडिया ही ख़ामोश नहीं है बल्कि न्यायपालिका की ओर से भी कोई मज़बूत आवाज़ अभी नहीं सुनाई दी है.
Supreme Court should take the cognisance of Judge Loya’s mysterious death and order investigation ?? It is about the justice, fairness and faith in judicial system ! I AM SURE SC will do the needful !!
— ashutosh (@ashutosh83B) November 24, 2017
हो तो ये भी सकता था कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट स्वयं रिपोर्ट का संज्ञान लेकर जज लोया की मौत की जांच की घोषणा कर देते, लेकिन अभी तक ऐसा हो नहीं सका है.
अपने एक कार्यक्रम में टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने कहा है, “हत्यारा जज लोया की मौत की ख़बरें पढ़कर मुस्कुरा रहा होगा.”
हम अभी इस स्थिति में नहीं है कि लोया की मौत को हत्या कह दें क्योंकि प्रशासन ने मौत के समय इसे दिल के दौरे से हुई सामान्य मौत माना था.
लेकिन अब जब परिवार ने सवाल उठा दिए हैं तब उनकी मौत की नए सिरे से जांच होनी चाहिए.
एक बेहद गंभीर सवाल ये भी उठा है कि यदि सीबीआई के जज की संदिग्ध मौत की जांच नहीं हो रही तो यदि किसी आम आदमी के साथ ऐसा हो जाए तो उसकी बात कौन करेगा.
यही नहीं कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और वामपंथी दलों ने तो जज लोया की मौत का सवाल उठाया है लेकिन सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की ओर से अभी इस पूरे मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है.
भाजपा सांसद शत्रुघन सिन्हा ने ज़रूर कहा है कि लोया की मौत की जांच होनी चाहिए.
भाजपा नेताओं और मुख्यधारा की मीडिया की ख़ामोशी अब ख़तरनाक लग रही है. क्या जज लोया के साथ न्याय भी दफ़न हो गया?
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