
सप्रेक
सप्रेकः उत्तराखंड के दशरथ मांझी जिन्होंने पहाड़ का सीना काट अकेले ही बना दी सड़क
January 14, 2018
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ब्रजेश बिष्ट उत्तराखंड के नेपाल की सीमा से सटे चंपात ज़िले की लोहाघाट तहसील के एक गांव में रहते हैं.
सेना से सेवानिवृत्त बिष्ट जब छुट्टी में गांव आते तो उनका सामना घर पहुंचने के लिए दुर्गम पहाड़ी से होता.
अपने घर तक पहुंचने के लिए उन्हें बेहद मुश्किल पगडंडी का सहारा लेना पड़ता. बिष्ट जितनी भी बार इस पगडंडी से गुज़रते उनके मन में ख़्याल आता कि शायद अगली बार छुट्टियों में घर लौटने तक सरकार गांव तक पहुंचने के लिए सड़क बना दे.
धीरे–धीरे समय बीतता गया, बिष्ट के सेवानिवृत्त होने के दिन करीब आ गए लेकिन उनके गांव तक की सड़क नहीं बनी.
ग्राम प्रधान की ओर से कई बार पत्र लिखकर ज़िला प्रशासन से सड़क बनाने का आग्रह भी किया गया.
लेकिन जब सारी मांगें अनसुनी कर दी गईं तो बिष्ट ने तय किया को वो हालात को स्वयं ही बदल देंगे.
साल 2014 में उन्होंने अपने दम पर सड़क बनाने का काम शुरू करने का निश्चय कर लिया.
बिष्ट ने अपनी योजना गांव के लोगों से साझा की लेकिन साथ देने के लिए आगे कोई नहीं आया.
लेकिन इससे बिष्ट का हौसला नहीं डिगा बल्की और मज़बूत हुआ और उन्होंने सड़क बनाने का काम ख़ुद ही शुरू कर दिया.
हालांकि गांव वालों के साथ न आने का उन्हें थोड़ा दुख ज़रूर था.
शुरुआत में लोगों ने इसे पागलपन समझकर उनका मज़ाक बनाया. घरवाले भी पहाड़ काटकर सड़क बनाने की बात से नाराज़ हो गए.
ब्रजेश बिष्ट के सामने पहाड़ था तो उनके इरादे भी चट्टान थे. उन्होंने काम जारी रखा.
वो बिना रुके लगातार मेहनत करते रहे जिसका नतीजा ये हुआ कि अब डेढ़ किलोमीटर लंबी सड़क बनकर तैयार है. उनका गांव राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ गया है.
जो पगडंडी पहले सिर्फ़ पैदल चलने लायक थी उसे अब ब्रजेश बिष्ट ने सात फुट चौड़ा कर दिया है.
ब्रजेश बिष्ट के गांव तक पहले सबको पैदल ही आना पड़ता था. अब हल्के वाहन सीधे गांव तक आ सकते हैं.
ब्रजेश बिष्ट के प्रयासों से सड़क बनने की ख़बर जब स्थानीय मीडिया में प्रकाशित हुई तो स्थानीय प्रशासन ने भी अब मदद का भरोसा दिया है.
अधिकारियों ने सिर्फ़ अपनी ग़लती मानी है बल्कि सड़क को और चौड़ा करने की बात कही है.
यही नहीं सेना के मध्य कमान के लेफ़्टिनेंट को जब ब्रजेश बिष्ट के काम के बारे में जानकारी मिली तो सेना ने उन्हें सम्मानित भी किया.
ब्रजेश बिष्ट की तुलना बिहार के दशरथ मांझी से की जाती है जिन्होंने पहाड़ काटकर अपने गांव तक सड़क पहुंचा दी थी.
लेकिन ब्रजेश बिष्ट कहते हैं कि उन्हें किसी सम्मान से ज़्यादा ख़ुशी इस बात की होती है कि अब उनके गांव के लोग बिना किसी दिक्कत के मुख्य सड़क से जुड़ गए हैं और गांव आने जाने का रास्ता आसान हो गया है.
Source: Amar Ujala, Newstrack
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