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वाराणासी हादसाः बस मुआवज़ा मिलेगा, इंसाफ़ नहीं
May 17, 2018
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पूनम कौशल
वाराणासी के धीमे ट्रैफ़िक में निर्माणाधीन पुल के नीच फंसे लोगों को घर देर से पहुंचने की झुंझलाहट तो हो रही होगी लेकिन उन्हें ये अंदाज़ा नहीं होगा कि ये उनकी ज़िदगी का आख़िरी सफ़र है.
उन लोगों की क़िस्मत पर लापरवाही का बीम गिरा और हंसती-फिरती ज़िंदगी सिसकियों और फिर मौत के मातम में बदल गई.
बचाने पहुंचे लोग भी टनों वज़नी बीम के आगे बेबस हो गए. बीम के नीचे गाड़ियों में फंसे लोग मदद की गुहार लगा रहे थे लेकिन मददगार चाहकर भी कुछ कर नहीं पा रहे थे.
वाराणासी में मंगलवार देर शाम हुए हादसे में 18 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है और करीब तीन दर्जन घायल हैं. घायलों में भी कई की हालत गंभीर बनी हुई है.
ये हादसा मानों होने का इंतेज़ार कर रहा था. सुरक्षा मानकों को नज़रअंदाज़ कर भारी निर्माण के नीचे से ट्रैफ़िक निकाला जा रहा था.
यदि नियमों का पालन किया गया होता तो वाहन वहां होते ही नहीं.
हादसे के बाद हमेशा की तरह एक बार फिर सरकार ने कहा है, ‘दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा.’
जिन लोगों की मौत हुई उनके परिवारों को मुआवज़ा तो मिल जाएगा लेकिन इंसाफ़ नहीं.
हादसे के बाद वाराणासी पहुंचे डिप्टी सीएम और लोक निर्माण विभाग मंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ‘यह घटना दुखद है, इसकी जितनी निंदा की जाए कम है. इस पूरे मामले की जांच कराके दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा.’
सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी वाराणासी पहुंचे और जांच टीम का गठन करने के बाद कहा, ‘यह घटना बहुत दुखद है. टीम की रिपोर्ट के बाद ज़िम्मेदारों पर कार्रवाई की जाएगी.’
सवाल ये उठता है कि अगर कोई ज़िम्मेदार होता तो इतना बड़ा हादसा ही क्यों होता. जिन पर ज़िम्मेदारी है वही तो अपना काम नहीं कर रहे हैं.
मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री और पीडब्ल्यूडी मंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ज़िम्मेदारी की सूई को अपनी ओर नहीं मोड़ा. वो अधिकारियों पर कार्रवाई करेंगे लेकिन ये नहीं बताएंगे कि उनकी अपनी ज़िम्मेदारी क्या है.
उनका काम हादसों के बाद सिर्फ़ जांच के आदेश देना नहीं है. हादसे रोकना है.
स्थानीय अख़बार लगातार इस निर्माण के दौरान हो रही लापरवाहियों और जनता की सुरक्षा को ख़तरे के प्रति आगाह कर रहे थे. शासन या प्रशासन ने इस पर क्या कार्रवाई की?
भारत में इस तरह के हादसे और उसके बाद जांच होना कोई नई बात नहीं है.
जनता के तत्कालीन आक्रोश पर मुआवज़े का मरहम लगा दिया जाता है और फिर जांच के आदेश देकर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर ली जाती है.
हमारे नेताओं में अब इतना नैतिक बल ही नहीं बचा है कि वो अपने आप को भी ज़िम्मेदारी के दायरे में शामिल करें. बल्कि वो तो सत्ता के अहंकार में मदमस्त हो अपने आप को हर ज़िम्मेदारी से ऊपर समझने लगे हैं.
मार्च 2016 में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में ऐसे ही एक हादसे में विवेकानंद फ्लाइओवर का निर्माणाधीन हिस्सा गिरने से 50 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और 80 से अधिक घायल हुए थे.
तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बंगाल के लिए ईश्वर का संदेश बताया था. तब उन्होंने कहा था, ‘ये ईश्वर का संदेश है कि पश्चिम बंगाल को तृणमूल कांग्रेस से बचाया जाए.’
इस हादसे के कुछ ही दिन बाद पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना से ज़्यादा अपने राजनीतिक हित थे.
अब उनके संसदीय क्षेत्र और धर्मनगरी वाराणासी में हुए इस भीषण हादसे के बाद वो शायद ईश्वर के संदेश को पढ़ ही न पाएं.
भारत में हादसे होते रहते हैं, हादसों में लोग मरते रहते हैं बस ज़िम्मेदार नेता इस्तीफ़ा नहीं देते.
1956 में तमिलनाडु के अरियालुर में हुए एक रेल हादसे के बाद तत्कालीन रेलमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने हादसे की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था.
इसके 43 साल बाद अगस्त 1999 में असम के गैसाल में हुए एक रेल हादसे के बाद तत्कालीन रेल मंत्री और बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नैतिक आधार पर इस्तीफ़ा दे दिया था.
अगले ही साल दो बड़े रेल हादसों के बाद तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने भी इस्तीफ़े की पेशकश की थी लेकिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका इस्तीफ़ा मंज़ूर नहीं किया था.
इनके अलावा हादसे के बाद किसी मंत्री के इस्तीफ़े की कोई उल्लेखनीय मिसाल नहीं मिलती. क्योंकि अब ‘दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा’ का बयान देकर काम चला लिया जाता है.
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