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स्वप्ना बर्मन: अभाव और दर्द से जूझते हुए अपने सपने को साकार करने की ज़िद्द की कहानी
September 1, 2018
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“कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों ” स्वप्न बरमन की उपलब्धि और कहानी इस बात को खरा साबित करने के लिए काफी हैं।
स्वप्न बरमन ने एशियन गेम्स 2018 मे हेप्टाथलॉन मे हिस्सा लिया था, हेप्टाथलॉन एक सात तरह के प्रतिस्पर्धा को मिलाकर बनी प्रतियोगिता है जिसमें पहले दिन100 मीटर बाधा रेस, हाई जम्प, शॉट पॉट और 200 मीटर की दौड़ और दूसरे दिन लाँग जम्प, जेवलिन, 800 मीटर की दौड़ शामिल हैं। पहले दिन के अंत में, भारत की स्वप्न बरमन चीन के वांग किंगिंग से पीछे चल रही थीं। स्वप्ना अपने जबड़े के इंफेक्शन से भी जूझ रही थीं। दर्द इतना असहनीय था कि प्रतियोगिता बीच मे ही छोड़ने पर विचार किया जा रहा था।
हालांकि, अगले दिन 21 वर्षीय स्वप्ना ने एशियाई खेलों में भारत के लिए पहला हेप्टाथलॉन स्वर्ण जीतकर इतिहास लिख दिया। इस ऐतिहासिक जीत के पीछे The Logical Indian की भी एक छोटी सी कोशिश रही थी।
Proudest moment of my life! I am humbled and honoured by the love and support I have received from all over the world! I would like to thank my coach Subhash Sarkar, my physios, all the doctors who have helped me compete, @GoSportsVoices @Media_SAI @afiindia pic.twitter.com/IEIMV8QNsq
— Swapna Barman (@Swapna_Barman96) August 31, 2018
12 उंगलियों वाली स्वप्न बरमन हर चुनौती से ऊपर उड़ी
स्वप्ना एक मुश्किल पृष्ठभूमि से आती है, समाज का वो तबका जिस पर सरकार या आम आदमी की नजर नहीं जाती, तो उस तबके मे हुनर को खोजने की बात तो छोड़ ही दिजिए। पिता रिक्शा खींचा करते थे मगर दो बार लकवा का अटैक आने के बाद अब बिस्तर पकड़ चुके थे। द टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार उनकी मां नौकरानी का काम करतीं हैं और चायबगान में भी काम करती है। स्वप्ना उत्तरी बंगाल में जलपाईगुड़ी से हैं और उनके परिवार की वित्तीय बाधाओं ने उनके सपनों में बाधा डाली लेकिन उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। आज, उनके परिवार के सदस्यों को खुशी है, यह जानकर कि उनके सभी बलिदान का फल मिल गया है।
Family members of Swapna Barman celebrate at their residence in Jalpaiguri after she won gold medal in Women's Heptathlon at #AsianGames. Her mother says,"We're very happy. Me & Swapna's dad toiled hard to help her in her journey. Today all our dreams came true." #WestBengal pic.twitter.com/oXMvTwornT
— ANI (@ANI) August 29, 2018
प्रत्येक पैर पर छह उंगलियों के साथ पैदा हुई, उसे सामान्य खेल के जूते पहनने में कठिनाई होती थी। दक्षिण कोरिया में एशियाई खेलों के आखिरी संस्करण में, वह अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए संघर्ष कर रही थी क्योंकि जूते में से कोई भी उसे पूरी तरह से फिट नहीं आया।
तर्कसंगत का पक्ष
वर्ष 2014 में The Logical Indian ने एक अभियान चलाया साथ ही Change.org पर भी एक याचिका डाली, अपने एक लेख में The Logical Indian ने लिखा था की दर्द स्वप्ना के खेल की बड़ी बाधा है, कस्टम मेड जूतों का खर्च उठाने के लिए वह गरीब है, लेकिन अगर हम यह ठान लें कि दर्द को उसके खेल की ऊंचाइयों के आड़े नहीं आने देंगे, तो हम उसका दर्द के बगैर खेलने का सपना और भारत के लिए 2018 गेम्स में पदक लाने का सपना पूरा कर सकते हैं। आज चार साल बाद अटूट ज़ज़्बा, बैंडेज किया हुआ जबड़ा और कस्टम मेड जूतों के साथ स्वप्ना बर्मन पहली भारतीय महिला बनी जिसने एशियाई गेम्स 2018 के हेप्टाथलॉन में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया।
आज, स्वप्ना चुनौतियों से ऊपर उठ गई है लेकिन कई और संभावनाएं और ऐसी ही योग्यताएं हैं हमारे देश में जो पदक विजेता हैं, जिन्हें भारत को गौरवान्वित बनाने के लिए केवल थोड़ी सी सहायता की आवश्यकता है।
हम स्वप्ना को बधाई देते हैं और अपने भविष्य के प्रयासों में उसे शुभकामनाएं देते हैं।
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