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87 वर्षीय प्रोफेसर जी डी अग्रवाल की गंगा के लिए लड़ते हुए अपने उपवास के 111 वें दिन मृत्यु हो गई
October 13, 2018
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प्रसिद्ध पर्यावरणविद और गंगा की सफाई के लिए आजीवन लड़ने वाले, जीडी अग्रवाल, जो अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर थे, अब हमारे बीच नहीं रहे। 87 वर्षीय कर्मठ योद्धा 22 जून से भूख हड़ताल पर थे और 111 वे दिन तक उनका आमरण अनशन चलता रहा। उन्हें उनके उपवास के 109 वें दिन ऋषिकेश में एम्स अस्पताल ले जाया गया था और वह दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।
GD Agarwal, our leading environmentalist who fasted 109 days to save the Ganga, was forcibly picked up by the Uttarakhand police&hospitalized yesterday.He passed away today after his pleas to save the Ganga fell on Modi's deaf years. RIP Dear Sir. This world is not for pure souls https://t.co/7a95ICK1tq
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) October 11, 2018
इससे पहले
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ. जी. डी. अग्रवाल को 10 जुलाई मंगलवार को उत्तराखंड के कंकल-हरिद्वार में अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के स्थान से निकाल दिया गया था। गंगा नदी से संबंधित मुद्दों के बारे में उनके उपवास का 19वां दिन था।
रिपोर्टों के अनुसार, डॉ. अग्रवाल को उनके खराब स्वास्थ्य के कारण एम्स, ऋषिकेश में ट्रांसफर कर दिया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, 22 जून को उपवास शुरू होने के बाद से उन्होनें अपना लगभग 9 किलो वज़न खो दिया था।
86 वर्षीय डॉ. अग्रवाल, जिन्हें स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद के नाम से जाना जाता है, को पुलिस की एक टीम ने उन्हें उनके अनशन के स्थान से ज़बरन हटाया था। इसके बाद पूर्व आईआईटी प्रोफेसर से कार्यकर्ता बने डॉ. जी. डी. अग्रवाल को किसी अज्ञात स्थान पर रखा गया था।
बुधवार, 11 जुलाई को स्वामी सानंद के उपवास की सफलता के लिए महात्मा गांधी के स्मारक पर प्रार्थना करने के लिए राजघाट में पर्यावरणविद और कार्यकर्ता एकत्रित हुए थे।
यूएनआई द्वारा रिपोर्ट अनुसार अपने बलपूर्वक बेदखल होने के बाद, स्वामी सानंद ने पुलिस कार्रवाई के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह समेत उत्तराखंड उच्च न्यायालय के बेंच ने बुधवार को हस्तक्षेप करते हुए राज्य के मुख्य सचिव को इस मुद्दे को हल करने के लिए अगले 12 घंटों में स्वामी जी के साथ बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया। गंगा की सहायक नदियों के साथ साथ भागीरथी, पलमानारी, लोहारी नागपाल और भरो-घाटी पर चल रही जलविद्युत परियोजनाओं के विषय पर स्वामी सानंद से बात की जानी थी। अदालत ने प्रधान सचिव (गृह) को उनके समर्थकों को स्वामी के स्थान का खुलासा करने का भी निर्देश दिया।
अदालत को अपनी याचिका में, पूर्व आईआईटी प्रोफेसर ने समझाया कि गंगा के लिए उनकी भूख हड़ताल शांतिपूर्ण थी और कानून और व्यवस्था के लिए कोई खतरा नहीं था, इस तथ्य के बावजूद भी उन्हें और उनके समर्थकों को पुलिस द्वारा मातृ-सदन से जबरन हटा दिया गया था और उनके समर्थकों के साथ बुरा बर्ताव किया गया था।
नेट इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ राजेंद्र सिंह, जिन्हें “भारत के वाटरमैन” के नाम से जाना जाता है, ने प्रधान मंत्री से गंगा संरक्षण और प्रबंधन विधेयक के तत्काल सुनिश्चित करने और नदी के साथ बांधों के निर्माण को रोकने के लिए आग्रह किया था, जो कि डॉ. अग्रवाल की मुख्य मांग थी।
श्री सिंह ने कहा कि गंगा के लिए पीएम मोदी की प्रतिबद्धता पर भरोसा करते हुए डॉ. अग्रवाल ने आम चुनाव से पहले 2014 में देश में सभी आंदोलन कार्यक्रमों को रोक दिया था। उन्होंने कहा कि 2014 से, अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है और गंगा संरक्षण के नाम पर करीब 20,000 करोड़ रुपये बर्बाद किए गए हैं।
तर्कसंगत से बात करते समय डॉ. राजेंद्र सिंह ने सरकार द्वारा की गई कार्रवाई की कमी की निंदा की। उन्होंने कहा कि डॉ. अग्रवाल की स्थिति बिगड़ रही थी, जबकि सरकार समय काट रही थी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के मुख्य सचिव, जिन्हें हाई कोर्ट ने स्वामी सानंद से मिलने का आदेश दिया था, वह भी उनसे मिलने नहीं आये बल्कि यह कह कर टाल गए की यह उनके अधिकारक्षेत्र से बाहर है।
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