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बुलंदशहर हिंसाः बजरंग दल की ज़िद इन परिवारों के लिए बन गई तबाही
December 7, 2018
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पूनम कौशल, बुलंदशहर से लौटकर
“उसका सपना वर्दी पहनने का था, वो लेफ़्टिनेंट बनना चाहता था. पूछता रहता था मैं वर्दी पहनूंगा तो कैसा लगूंगा. मैं कहती थी ज़्यादा मत बन, नज़र लग जाएगी. मेरे भाई को भीड़ की नज़र लग गई.”
अपने छोटे भाई सुमित को याद करते–करते बबली चौधरी के आंसू सूख चुके हैं, गला रूंध गया है. वो उसके लिए सम्मान चाहती हैं. उनकी नज़र में सुमित एक सीधा–सादा नौजवान था जो सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहा था.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से क़रीब 100 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के स्याना थानाक्षेत्र के चिंगरावठी गांव के रहने वाले सुमित इसी सोमवार को भीड़ की हिंसा में मारे गए थे.

20 साल के सुमित उस भीड़ का हिस्सा था जिसने कथित गोहत्याओं के विरोध में रास्ता जाम किया था और पुलिस चौकी में आग लगा दी थी. इसी हिंसा में स्याना थाने के एसएचओ सुबोध कुमार भी मारे गए थे.
चिंगरावठी पुलिस चौकी पर लगी आग अब बुझ चुकी है लेकिन इस आग में झुलसी ज़िंदग़ियां अब शायद कभी सामान्य जीवन न जी सकें.
बुलंदशहर का ये इलाक़ा अपने गन्नों की मिठास के लिए जाना जाता है. लेकिन अब यहां कि हवा में एक ज़हर घुला सा लगता है. अजीब तनाव और डर लोगों के चेहरों पर दिखता है जिसके बारे में वो बात करने से कतराते हैं.

चिंगरावठी गांव में सन्नाटा पसरा है. गांव के सभी नौजवान पुलिस की कार्रवाई के डर से घर छोड़ गए हैं. इक्का–दुक्का बच्चे और बुज़ुर्ग ही नज़र आते हैं.
चिंगरावठी से एक पतली घुमावदार सड़क महाव गांव पहुंचती हैं. कथित गोहत्या इसी गांव के जंगलों में हुई थी. अब महाव में मातम सा नज़र आता है.
सुबह आठ बजे जब मैं इस गांव पहुंची तो सिर्फ़ महिलाएं ही दिखीं जो बुग्गी–गाड़ी पर बैठकर खेतों पर काम करने जा रहीं थीं.
ये गन्ने की फ़सल के कटान का मौसम है. यहां के किसान पहले ही गन्ने की फ़सल की सरकारी अनदेखी से परेशान थे. अब इस दंगे ने उनके लिए हालात और मुश्किल कर दिए हैं.

महाव की रहने वाली प्रीति चौधरी के लिए सोमवार किसी और दिन की तरह ही था. संपन्न किसान परिवार में ब्याही प्रीति दो बच्चों की मां हैं. कई पशु पालती हैं. उन्हें अपनी ज़िंदग़ी से कोई शिकायत नहीं थी.
अब वो सोमवार सुबह के उस वक़्त को याद करके रोती हैं जब उनके पति को फ़ोन पर सूचना मिली थी कि उनके खेत में गायों को काटा गया है.
प्रीति कहती हैं, ’’मेरे पति रोज़ की तरह दूध लेकर डेयरी पर गए थे. उनके पास गांव के लोगों का फ़ोन आया कि आपके खेत में गोअंश मिले हैं. वो काम बीच में छोड़कर खेत की ओर दौड़े. खेत पर पहुंचते ही उन्होंने फ़ोन करके पुलिस को सूचना दी.’’

“सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और ज़रूरी कार्रवाई की. पुलिस और मेरे पति गोअंशों को वहीं दबा देना चाहते थे. पुलिस ने मेरे पति से कहा कि इन्हें यहीं दबा दो, इससे मामला शांत हो जाएगा और तनाव नहीं फैलेगा, झगड़ा नहीं बढ़ेगा. मेरे पति इस पर सहमत हो गए. लेकिन मौके पर भीड़ इकट्ठा हो गई और बजरंग दल के लोग भी वहां पहुंच गए.”
“दल के लोगों ने ज़ोर दिया कि अगर इस बात को यहीं दबा दिया गया तो आगे फिर इस तरह की गो हत्याएं होंगी और वो प्रदर्शन करने पर अड़ गए. वो ज़बरदस्ती सारा मलवा ट्रेक्टर ट्राली में डलवाकर चौकी पर ले गए और प्रदर्शन शुरू कर दिया.”
चिंगरावठी पुलिस चौकी पर किया गया प्रदर्शन हिंसक हो गया और इसमें एसएचओ सुबोध कुमार और 20 वर्षीय सुमित चौधरी मारे गए.
प्रीति का कहना है कि सोमवार रात क़रीब डेढ़ बजे पुलिस उनके घर पहुंची और तोड़फोड़ की. प्रीति के पति राजकुमार चौधरी को हिंसा का अभियुक्त बनाया गया है. पुलिस उन्हीं की तलाश में घर आई थी. राजकुमार फरार हैं और उनका अभी तक घर से कोई संपर्क नहीं हो सका है.
प्रीति का दावा है कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट भी की थी और उनकी कार समेत घर में रखा सभी सामान तोड़ दिया था.
हिंसा के बाद से पति फ़रार हैं और खेत में खड़ी फ़सल को काटने की ज़िम्मेदारी अब प्रीति पर आ गई है. वो कहती हैं, “मैंने कभी अपना खेत नहीं देखा, मैं नहीं जानती की सब काम कैसे होगा. उस दिन आए उस तूफ़ान ने मेरे परिवार को तबाह कर दिया है.”
प्रीति का कहना है कि अगर बजरंग दल के लोग मौके पर नहीं पहुंचे होते और उन्होंने प्रदर्शन करने की ज़िद न की होती तो उनका परिवार इस तबाही से बच जाता.
महाव गांव के ही दूसरे कौने पर सैनिक जितेंद्र मलिक का घर है. वो भी हिंसा के अभियुक्त हैं. घर में अब सिर्फ़ उनकी मां रतन कौर हैं, रो–रोकर जिनकी हालत ख़राब हो गई है.

रतन कौर का आरोप है कि सोमवार रात उनके घर पहुंची पुलिस ने भारी तोड़फोड़ की. इस तोड़फोड़ के निशान साफ़ नज़र आते हैं. घर में सभी सामान बिखरा पड़ा है. वाशिंग मशीन, पंखे, टीवी और अन्य सभी सामान टूटा पड़ा है.
पुलिस का कहना है कि जितेंद्र मलिक दंगाई भीड़ में शामिल थे जबकि रतन कौर का कहना है कि उनका बेटा अपनी ड्यूटी पर था.
रतन कौर के पति को पुलिस ने हिरासत में ले रखा है जबकि उनका बेटा अभी फ़रार है. रतन कौर कहती हैं, “उस दिन जो भी हुआ ग़लत हुआ. किया धरा बजरंग दल वालों ने भुगतना हमें पड़ रहा है. मेरा तो घर तबाह हो गया है.”
रतन कौर के बेटे जितेंद्र मलिक भीड़ में शामिल थे या नहीं ये पुलिस की जांच का विषय है. लेकिन एक बात स्पष्ट है कि सोमवार की घटना उन पर किसी वज्रपात की तरह हुई है.

जब हम महाव गांव से लौट रहे थे तो रतन कौर हमारी गाड़ी के आगे लेट गईं और रो–रोकर बेहोश हो गईं. उनका कहना था कि कि उनकी बात को भी सरकार तक पहुंचाया जाए.
‘इस आग में दो कोख सूनी हो गईं. मैं भी एक मां हूं. मेरे पेट में भी आग लग रही है. जिसने ये किया उन्हें छोड़ो मत और जो बेग़ुनाह हैं उन्हें फंसाओं मत.’
राजकुमार के जिस खेत में गायों के अवशेष मिले थे वो गांव से क़रीब एक किलोमीटर दूर जंगल में हैं.
यहां तक या तो महाव गांव से होकर गुज़रने वाले रास्ते से पहुंचा जा सकता है या एक रास्ता और है जो तीन किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग से जा मिलता है.
यहां पर ख़ून और बिसरा अभी भी पड़ा है. जिस खेत में कथित गौकशी हुई उसमें खड़ी ईख को मज़दूर काट रहे हैं.

रिश्ते में राजकुमार के एक भाई गन्ना लदवाकर ले जा रहे थे. ट्राली रोककर वो बोले, “हमारा सीधा–सादा भाई बर्बाद हो गया. उसकी ग़लती सिर्फ़ ये थी कि उसके खेत में कांड हुआ. राजनीति करने वालों ने राजनीति कर ली. तबाह हमारा परिवार हो गया.”
उनका चेहरा ग़ुस्से में लाल हो रहा था. वो कहते हैं, “जो हंगामा हुआ उसकी कोई ज़रूरत ही नहीं थी. पुलिस एफ़आईआर दर्ज करके कार्रवाई करने की बात कर रही थी और अवशेषों को यहीं खेत में दबवा देना चाहती थी लेकिन कुछ नेता हंगामे पर अड़ गए. वही इस फ़साद की जड़ हैं. उनका किया हम भुगत रहे हैं.”
खुले छोड़ दी गईं गायें इस इलाक़े की एक बड़ी समस्या हैं. गायों से फसलें बचाने के लिए किसानों को अपने खेतों की तारबंदी पर भारी ख़र्च तक करना पड़ा है.

हमें कई आवारा गायें ईख की फ़सल खाते हुए दिखीं. राजकुमार की पत्नी प्रीति कहती हैं, “गायें जब दूध देना बंद कर देती हैं और गर्भवती नहीं होती हैं तो किसान उन्हें खुला छोड़ देते हैं. ये गायें फ़सले खाती हैं लेकिन लोग उनसे कुछ नहीं कहते क्योंकि वो उनकी पूजा करते हैं. लेकिन सरकार को इन गायों को बचाने के लिए क़दम उठाने चाहिए.”
“योगी जी और मोदी जी ने गाय को खुला छोड़ने पर तो रोक लगा दी है लेकिन उन्हें गायों के लिए चारे और रहने की जगह का प्रबंध भी करना चाहिए. गायें किसानों के खेतों का नुक़सान कर रही हैं लेकिन किसान फिर भी नहीं कहते कि हमारे खेतों का नुक़सान हो रहा है. सरकार को गायों के लिए प्रबंध करने होंगे, नहीं तो देश के किसी भी इलाक़ें में, कहीं भी ऐसा कांड हो सकता है.”
इस इलाक़े के लोग गायों को लेकर भावनात्कम रूप से बेहद संवेदनशील हैं. ज़्यादातर घरों में दूध के लिए गायें पाली जाती हैं लेकिन जब ये गायें दूध देना बंद कर देती हैं तो उन्हें खुले में छोड़ दिया जाता है.
किसने की गोहत्या?

राजकुमार के खेत में गोकशी की गई या वहां पर अवशेष कहीं से लाकर डाले गए ये पुलिस की जांच का विषय है.
बहुत संभव है कि जंगल में खुले घूम रही गायों को गोकशों ने मांस के लिए काटा हो. संभव ये भी है कि किसी साज़िश के तहत अवशेष यहां डाले गए हों.
बुलंदशहर पुलिस का कहना है कि उसकी सबसे पहले कोशिश ये पता लगाने की है कि खेत में गायों के अवशेष कहां से आए और इसके पीछे कौन है.
इसके पीछे जो भी हो, लेकिन इस घटना ने इलाक़े की शांति और कई परिवारों की ज़िंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है.
सबसे ज़्यादा प्रभावित वो महिलाएं नज़र आती हैं जिनके सामने अब इस घटना के बाद के हालातों से निबटने की चुनौती हैं.
अपना बेटा गंवाने वाली सुमित की मां की आवाज़ अब नहीं निकल पा रही हैं. वो घर के एक हिस्से में अनशन कर रही हैं.
मौत पर राजनीति से नाराज़गी
वहीं सुमित के भाई विनीत बताते हैं कि उन्हें सबसे ज़्यादा दुख इस बात का है कि उनके भाई की मौत पर राजनीति करने की कोशिश की जा रही है.
“मेरा भाई न गौरक्षक था, न किसी हिंदूवादी संगठन से जुड़ा था और न ही किसी पार्टी से. वो एनडीए के लिए तैयारी कर रहा था. वो ग़लत समय पर ग़लत जगह था. उसकी मौत से उबरना हमारे परिवार के लिए बहुत मुश्किल है.”
वो कहते हैं, “कुछ लोग हमारे परिवार के दर्द पर राजनीति करना चाह रहे हैं. ये ग़लत है. सज़ा उन लोगों को दी जानी चाहिए जिन्होंने भीड़ वहां जुटायी थी.”

सुमित की बहन बबली चौधरी कहती हैं, “हमारे परिवार की आर्थिक हालत बहुत ख़राब है. मेरी दो बहने नोयडा में निजी नौकरी करके भाइयों को पढ़ाने की कोशिश कर रहीं थीं. भाइयों का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने अपने सपने त्याग दिए. अब वो भाई ही चला गया. जिसके घर से जाता है दर्द उसे ही होता है.”
वो कहती हैं, “सरकार को हमारे परिवार की मदद करनी चाहिए और मेरे दूसरे भाई को पुलिस में नौकरी देनी चाहिए.”
वो कहती हैं, “मेरे भाई को उस भीड़ में नहीं होना चाहिए था. वो घर से अपने दोस्त को छोड़ने सड़क पर गया था जहां पहले से वो हंगामा हो रहा था. ग़लती ना इंस्पेक्टर सुबोध की है. न सुमित की. दोनों ही उन्मादी भीड़ का शिकार हुए हैं.”
ज़हर घोला जा रहा है
वहीं इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के बेटे अभिषेक ने हमसे फ़ोन पर बात करते हुए कहा, “सबसे दुखद ये है कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी सांप्रदायिक राजनीति की कोशिश की जा रही है. ये समझदारी से काम लेने का समय है. लोगों को भड़काऊ बातों से भड़कने के बजाए संयम से काम लेना चाहिए. ”
“एक ज़हर है जो लोगों को दिलों में घोला जा रहा है. सांप्रदायिक हिंसाओं में छोटे–छोटे बच्चे तक मारे जा रहे हैं. सांप्रदायिकता की वजह से हमारे देश की हालत बद से बदतर होती जा रही है. धर्म एक बेहद पवित्र चीज़ हैं, इस पवित्र चीज़ का इस्तेमाल हिंसा के लिए नहीं होना चाहिए. हमें अपने दिलों को साफ़ करना चाहिए.”
गायों पर हमले
बुलंदशहर के स्याना, औरंगाबाद और अन्य इलाक़ों में रह–रहकर कथित गो हत्याओं की वारदातें सामने आ रही हैं.
सोमवार को हुए हंगामे के बाद से दो जगह इसी तरह गोहत्या या गाय पर हमलों की वारदातें सामने आई हैं. एक मामले में पुलिस ने चार कथित गोकशों को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है. हालांकि हिंसा का सूत्रधार माना जा रहा बजरंग दल का योगेश राज अभी फ़रार है.
गुरुवार को हुई एक दूसरी घटना में एक गाय हमला हुआ. घायल गाय को देखकर लोगों का ग़ुस्सा भड़का और भीड़ जमा हो गई. कथित हिंदूवादी संगठनों के लोग भी मौके पर पहुंचे. हालात संभालने के लिए प्रशासन को भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा.
चिंगरावठी में हुई घटना के बाद भी इस तरह की घटनाओं का होना बताता है कि यहां कोई भी छोटी घटना बड़ा रूप ले सकती है. स्थानीय लोगों और प्रशासन, दोनों के लिए ही ये मुश्किल समय है जिससे संयम और समझदारी से ही निकला जा सकता है.
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