क़ाग़ज़-कलम
कागज़ कलम: दिव्या तिवारी
December 13, 2018
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समाज – कौन है तू?
क्यों रोकेगा समाज मुझे तू,
मैं जन्मी हूँ खुद एक औरत के कोख से।
क्यों रोकेगा तू मुझे मजबूत होने से,
तू खुद बड़ा हुआ है एक औरत की गोद में।
क्यों रोकेगा तू मुझे पूजा अर्पण करने से,
खुद प्रार्थना करता है नवरात्रि में,
सुसज्जित खुद देवी के नौ रूपों से।
क्यों सबरीमाला में जाना मेरा उचित नहीं?
जब तू खुद जन्मा है एक स्त्री की यौनी से।
हम भी हैं मनुष्य, अवतरण उस ईश्वर के,
तो क्यों हैं बाधाएं हमारे मंदिर मस्जिद में प्रवेश पे?
और रोकते क्यों नहीं उन वास्तविक पापियों को,
जो तनिक ना सोचते दुर्गा स्वरूप कुमारियों चीर हनन में।
तो बोल समाज क्यों टोकेगा तू मुझे स्त्री होने पे,
मैं हूँ दुर्गा,काली, सरस्वती
जिनके अभाव में होगा तू अंतहीन अंधेरे में।
-दिव्या तिवारी
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