क़ाग़ज़-कलम
कागज़ कलम: राहुल तिवारी
December 13, 2018
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करके कुश्ती आकाश से, मन के अपने विश्वास से,
वो कुछ पैसे लाता है और खेतो को लहराता है
पर उपज धर नए बीज को,बहुमूल्य उस चीज़ को
जब बाजार तक वो लाता है, दाम टका एक न पाता है
तब फटी एड़िया रोती है, उस रात भूख न सोती है
उस पल बोझ भारी होता, और प्रश्न एक जारी होता
जो देश का भगवान था, मिट्टी का जो सम्मान था
वो बैठ ऐसे क्यों रोता है और खाली पेट क्यों सोता है
वो पगड़ी क्यों अब मैली है, खाली क्यों उसकी थैली है
वो मेहनत पूरी करता तो है और झुलस धूप में मरता तो है
फिर क्यों न उसको आराम मिले, खरा उसे एक दाम मिले।
क्यों चुप सब ऐसे रहते है, बहुत कम लोग ये कहते है
के अनादर उसका ठीक नही, उसे दाम चाहिए भिक नही।
एक छोटी सी बिनती है, आंकड़ो की जो ये गिनती है
उसे निकल के कुछ और करो, किसान मर रहा है ज़रा गौर करो.
-राहुल तिवारी
नींद से जाग जाते है अक्सर नींद में जाकर,
आँखों का सपने से रिश्ता बहुत गहरा होता है।
-राहुल तिवारी
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