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1984 के सिख विरोधी दंगों की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले नायक
Image Credits: Times Of India,Livehindustan.com,Bar N Bench,Times Now News
December 22, 2018
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17 दिसंबर को, पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. हमारी न्यायप्रणाली को इस फैसले तक पहुँचने में 34 साल लग गए. लेकिन किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि सज्जन कुमार की सजा के पीछे कई गुमनाम चेहरे हैं जो इस केस के हीरो हैं. यहां हम कुछ प्रमुख लोगों के बारे में चर्चा करते हैं, जो इस लंबी और सफल संघर्ष का चेहरा बने.
एचएस फूलका
73 वर्षीय एचएस फूलका, एक वरिष्ठ वकील हैं, जिन्होनें 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों के लिए लंबी लड़ाई मुफ्त में लड़ी, जब पूर्व कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार के लिए आजीवन कारावास की सजा का ऐलान किया गया, तो फूलका ने रोते हुए कहा, ‘यह बहुत बड़ी जीत है. यह पल 34 साल बाद आया है, हम बहुत खुश है.”
यह कहना गलत नहीं होगा कि फूलका ने इस मामले में अपना सब कुछ दे दिया, वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे और पंजाब विधानसभा सदन में विपक्ष के नेता के पद पर नियुक्त किए गए थे. हालांकि, पिछले साल दिल्ली बार काउंसिल ने उन्हें मामले में पेश होने से रोक दिया, यह कहते हुए कि उन्हें लाभ का पद मिला हुआ है. वह तुरंत अपने पद से हट गए. एनडीटीवी से उन्होंने तब कहा था, ”84 के जनसंहार के मामले नहीं छोड़ेंगे, बल्कि मंत्री पद छोड़ देंगे, सिख विरोधी दंगों के मामलों में मेरी उपस्थिति इस स्तर पर महत्वपूर्ण है; इसीलिए मैंने विपक्ष के नेता के रूप में पद छोड़ने का फैसला किया.“
फूलका को “निस्वार्थ और अथक” योगदान के लिए धन्यवाद देते हुए, केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ट्वीट किया, “मैं 1984 के सिख विरोधी नरसंहार के पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करने में वरिष्ठ अधिवक्ता सरदार एचएस फूलका द्वारा प्रदान की गई निस्वार्थ और अथक सेवा के लिए अपनी शुभकामनाएं देना चाहता हूँ.”
I want to put on record my acknowledgement for the selfless & tireless service rendered by Senior Advocate Sdr HS Phoolka in ensuring justice for the victims of 1984 Anti-Sikh massacre.@hsphoolka pic.twitter.com/FjL90lxdDx
— Hardeep Singh Puri (@HardeepSPuri) December 17, 2018
आर एस चीमा और उनकी बेटी तरन्नुम चीमा
1984 के दंगों को अक्सर नरसंहार कहा जाता है, जिसमें 3,000 सिख मारे गए. इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की एक अखिल सिख टीम द्वारा की गई थी. टीम में वरिष्ठ वकील आरएस चीमा भी थे, जिन्होंने विशेष लोक अभियोजक की क्षमता में सीबीआई का प्रतिनिधित्व किया था.
टीम द्वारा कई सबूत और दस्तावेज उपलब्ध कराए गए, मगर यह चीमा ही थे जिन्होंने राज नगर में पुलिस की दैनिक डायरी रजिस्टर उपलब्ध कराई थी. दैनिक डायरी में कहा गया है कि 1 नवंबर से 11 नवंबर के बीच कुछ भी नहीं हुआ, जब कि 341 लोगों की सरेआम हत्या की गयी थी. इसने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पुलिस के अत्याचारों के प्रति उदासीन रवैये पर ध्यान खींचा.
This 35 year old moved to delhi to handle witnesses and help her father who was special prosecutor. Now she is the lead prosecutor in the second case against sajjan kumarhttps://t.co/xWxJpKOUK6
— sunetra choudhury (@sunetrac) December 19, 2018
उनकी बेटी तरन्नुम चीमा के योगदान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, सभी गवाहों को संभालने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. तरन्नुम दो प्रमुख गवाहों- जगदीश कौर और निरप्रीत कौर के साथ वहां रहने के लिए दिल्ली चली गई, ताकि वे पूरी प्रक्रिया से भयभीत न हों. एनडीटीवी के अनुसार, तरन्नुम ने कहा, “वे उन्हें कम आंकने की कोशिश करते थे. उन्होंने उन्हें झूठा बनाने की भी कोशिश की, उन्होंने निरप्रीत को आतंकवादी भी कहा क्योंकि उन्हें एक छात्र नेता के रूप में जेल में डाला गया था,” गवाहों को निरंतर आश्वासन की जरूरत थी.
जगदीश कौर
मुख्य गवाहों में से एक, जगदीश कौर ने अपने पति, बड़े बेटे और तीन चचेरे भाइयों को खो दिया था. 77 साल की बुज़ुर्ग महिला, 34 साल तक विपरीत परिस्थितियों के सामने चट्टान की तरह खड़ी रही. द क्विंट के अनुसार, कौर ने कहा कि जब वह गवाह के रूप में पेश हो रही थीं, तो उन्हें अपने ऊपर बहुत दबाव का सामना करना पड़ा, उन्होनें यह भी कहा कि उन्हें केस वापस लेने के लिए पैसे की पेशकश की गई थी, “मैं पैसे का क्या करुँगी? मैं उन ज़िम्मेदार लोगों का खुलासा करने और उनके अपराध को उजागर करने के लिए मज़बूती से खड़ी थी.”
कौर यह भी कहती है, “उसे (सज्जन कुमार) को मार दिया जाना चाहिए जैसे उसने हमारे परिवारों को मार डाला”
निरप्रीत कौर
इस मामले में एक और मुख्य गवाह निरप्रीत कौर थी. तत्कालीन 16 वर्षीय निरप्रीत ने देखा किउनके पिता को उग्र भीड़ ने आग लगा दी थी. कौर कहती हैं कि 34 वर्षों के दौरान उन्होंने बहुत कुछ खोया लेकिन कहा कि सज्जन कुमार की गिरफ्तारी के साथ, “एक बड़ी मछली” पकड़ी गई है. द क्विंट को उन्होनें कहा , “हमें 34 साल बाद न्याय मिला है लेकिन यह पहली बार है कि किसी बड़ी मछली को पकड़ा गया है क्योंकि वे या तो गवाहों को धमकी देंगे या गवाह अपनी बात से पलट जायेंगे.”
1984 के बचे लोगों की मदद के लिए गठित जस्टिस फॉर विक्टिम्स ऑर्गनाइजेशन की चेयरपर्सन निरप्रीत कौर ने कहा कि जब उन्होनें सज्जन कुमार का नाम रखा, तो उन पर एक आतंकवादी और विनाशकारी गतिविधि निरोधक अधिनियम लगाया गया था. हालांकि, बाद में आरोप हटा दिया गया था.
तर्कसंगत का तर्क
1984 के नरसंहार के पीड़ितों को न्याय पाने में तीन दशक से अधिक समय लगा. इन नायकों की सराहना करना और उन्हें स्वीकार करना बहुत महत्वपूर्ण है और कई और ऐसे कई गुमनाम लोग हैं जिन्होंने अथक लड़ाई लड़ी. तर्कसंगत उनके धैर्य, दृढ़ संकल्प और धैर्य को सलाम करता है.
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