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आतंकवाद छोड़ कर भारतीय सेना में भर्ती शहीद लांस नायक नज़ीर अहमद वानी अशोक चक्र से सम्मानित
Image Credits: ADGPI Indian Army/Twitter
January 25, 2019
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नवंबर में, एक कश्मीरी पिता की अपने शहीद बेटे की मौत पर रोते हुए और, उसे एक भारतीय सेना के जवान द्वारा सँभालने की फोटो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी. पिता को सेना के जवान द्वारा सांत्वना देते हुए देखा गया था. उस तस्वीर में वह सैनिक इंडियन आर्मी के लांस नायक नज़ीर अहमद वानी थे.
लांस नायक नजीर अहमद वानी को अब भारत का शांति के वक़्त का सर्वोच्च वीरता पदक – अशोक चक्र (मरणोपरांत) से सुशोभित किया जायेगा. वह जम्मू और कश्मीर के शोपियां जिले में एक आतंकवादी मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे.
‘इख्वान’ से सैनिक
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार लांस नायक नज़ीर अहमद कुलगाम के रहने वाले थे जो पहले एक ‘इख्वान’ थे जिसका मतलब यह कि पहले वे खुद एक आतंकवादी थे. उन्होनें सरेंडर कर के इंडियन आर्मी ज्वाइन की थी. वो 34 राष्ट्रिय राइफल्स का हिस्सा थे और काउंटर इंसर्जेन्सी ऑपरेशन का हिस्सा थे. उन्हें दो बार सेना मैडल भी दिया गया था.
23 नवंबर को वानी और उनकी टीम को बटागुंड गांव में छह भारी हथियारों से लैस हिजबुल और लश्कर के आतंकियों के बारे में खुफिया सूचना मिली थी. वानी और उनकी टीम को आतंकवादी को रोकने का काम सौंपा गया था. प्रेजिडेंट सेक्रेटेरिएट से जारी एक प्रेस रिपोर्ट में कहा गया है, “खतरे को भांपते हुए, आतंकवादियों ने आंतरिक घेरा तोड़ने का प्रयास किया, अंधाधुंध गोलीबारी की और ग्रेनेड दागे. स्थिति से बेपरवाह, वानी इस स्थिति से बिना डरे अपनी जगह नहीं छोड़ी और अंधाधुंध फायरिंग में काफी करीब से एक आतंकी को मार गिराया.”
वानी फिर एक घर में गए जहां एक और आतंकवादी छिपा हुआ था. जब इस आतंकवादी ने भागने की कोशिश की, तो वानी ने बिना हथियार के उससे लड़कर उसे अपने कब्ज़े में लिया और उसे भी मार गिराया. अपनी गहरी चोट के बावजूद वानी आतंकवादी को मारने में सफल रहे. दुर्भाग्य से, वानी गोली से घायल होने की वजह से ज़िंदा नहीं बच पाए. उनके अंतिम संस्कार में, वानी को 21 तोपों की सलामी देकर सम्मानित किया गया. उनके जनाज़े के समय कई लोगों ने अपना सम्मान प्रकट किया.
तर्कसंगत का तर्क
तर्कसंगत नज़ीर अहमद वानी की शहादत के लिए उनको सलाम करता है, उन्होनें आतंकवाद का समर्थन करने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया है. आतंकवादियों को मारने के साथ उन्होनें यह सिध्द किया की आत्मसमर्पण के बाद भी आप इज़्ज़त की ज़िन्दगी जी सकते हैं और अपने काम से समूचे देश का सम्मान जीत सकते हैं. देश को उनपर गर्व है. परमात्मा उनके परिवार को इस संकट के समय से जूझने के लिए शक्ति दे.
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