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आरबीआई को नोटबंदी के लिए ढाई घंटे से भी कम का वक़्त मिला था-आरटीआई
Image Credits: Patrika/NDTV
March 12, 2019
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8 नवंबर, 2016 को भारतीय रिज़र्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा से पहले ढाई घंटे से भी कम का समय मिला था और पीएम ने केंद्रीय बैंक की औपचारिक स्वीकृति की प्रतीक्षा किए बिना ही नोटबंदी की घोषणा कर दी थी.
उसी दिन शाम 5.30 बजे हुई मीटिंग के मिनट्स में ये कहा गया कि बैंक ने काले धन पर अंकुश लगाने के केंद्र के इस फैसले से खुश नहीं थी. तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्व वाले केंद्रीय बोर्ड ने उच्च मूल्यवर्ग के 500 और 1,000 रुपये के नोट पर प्रतिबंध लगाने के 38 दिनों के बाद सरकार को अपनी मंजूरी दी थी.
28 महीने के बाद मिले उस मीटिंग के सार
कॉमन वेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव की वेबसाइट पर कार्यकर्ता वेंकटेश नायक द्वारा लगाई गई आरटीआई के तहत मिले जवाब के अनुसार, आरबीआई को एक ड्राफ्ट में वित्त मंत्रालय ने कहा कि 500 और 1,000 रुपये मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की वृद्धि 76.38% थी. और 2011-16 की अवधि के दौरान 108.98% जबकि देश की अर्थव्यवस्था केवल 30% बढ़ी थी और इसलिए नोटबंदी की आवश्यकता थी.
सरकार के तर्क का विरोध करते हुए, आरबीआई के निदेशकों ने कहा, “उल्लिखित अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर वास्तविक दर है, जबकि प्रचलन में मुद्रा में वृद्धि नाममात्र है और जब मुद्रास्फीति के लिए समायोजित की जाती है, तो कोई फर्क नहीं पड़ा”.
Congress releases Minutes of the Meeting where RBI has opposed the Demonetisation move of the Modi Govt. pic.twitter.com/YThBCtel3D
— Rachit Seth (@rachitseth) March 11, 2019
RBI ने आगे विश्व बैंक के अनुमानों के आधार पर राजस्व विभाग के निष्कर्षों पर सवाल उठाया जिसमें कहा गया था कि देश की छाया अर्थव्यवस्था (काला धन) 1999 में GDP का 20.7% थी और 2017 में बढ़कर 23.2% हो गई.
मिनट्स ऑफ़ मीटिंग नोटबंदी के 28 महीने के बाद आरटीआई के माध्यम से सामने आई. इससे पहले, आरबीआई ने रिकॉर्ड देने से इनकार करने के लिए ‘एक्सेम्पट क्लॉज’ की मदद ली और किसी भी जानकारी देने से मना कर दिया. हालाँकि, आरबीआई सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की सभी बैठकों के रिकॉर्ड, प्रेजेंटेशन या अन्य दस्तावेजों की मांग कर रहे नायक की आरटीआई क्वेरी ने नोटबंदी पर आरबीआई की अस्वीकृति को फिर से सुर्ख़ियों में ला दिया है.
RBI के निदेशकों ने नोटबंदी के फैसले का विरोध किया था
आरबीआई के निदेशकों ने कहा कि देश में अधिकांश काले धन को संपत्ति के रूप में रखा जाता है जैसे कि सोना या अचल संपत्ति में न की नकदी में. उन्होंने आगे कहा कि नोटबंदी से उन परिसंपत्तियों को कोई नुकसान नहीं होगा. इसके अलावा, उन्हें डर था कि अल्पावधि के लिए देश की अर्थव्यवस्था नीचे गिर जाएगी.
आरबीआई के बोर्ड का कहना था कि यह एक सराहनीय उपाय है लेकिन चालू वर्ष के लिए जीडीपी पर पर इसका बुरा असर पड़ेगा. अधिकांश काले धन को नकदी के रूप में नहीं बल्कि सोने या अचल संपत्ति जैसे परिसंपत्तियों के रूप में रखा जाता है और इस कदम से उन परिसंपत्तियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.”
मिनट्स ऑफ़ मीटिंग में उल्लेख किया गया है कि यह कदम लोगों को डिजिटल इकॉनमी का हिस्सा बनने और वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया में मदद करने के लिए प्रेरित करेगा. हैरानी की बात है कि इस मिनट्स ऑफ़ मीटिंग में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) और दो अन्य शोध संस्थानों द्वारा काले धन की रिपोर्ट का उल्लेख नहीं किया गया था, जिन्हें सरकार ने काले धन की गणना के लिए नियुक्त किया था.
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