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पूर्व CJI दीपक मिश्रा : “वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं बनाया जाना चाहिए, यह परिवारों में अराजकता पैदा करेगा”
Image Credits: India Today/Times Of India
April 11, 2019
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भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने 8 अप्रैल को कहा कि यह उनका “व्यक्तिगत विचार” है कि वैवाहिक बलात्कार को भारत में अपराध नहीं बनाया जाना चाहिए और ऐसा कानून आवश्यक नहीं है. बेंगलुरु में केएलई सोसाइटी लॉ कॉलेज में एक सम्मेलन में, मिश्रा ने कहा कि किसी दूसरे परिस्थिति से ली गयी सोच या विचार हमेशा सभी परिस्थितियों में लागू नहीं होते हैं.
दीपक मिश्रा ने क्या कहा?
“क्योंकि कुछ देशों ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध बना दिया है … मुझे नहीं लगता है कि इसे भारत में अपराध नहीं माना जाना चाहिए.” गांवों में, यह कई परिवारों में पूर्ण अराजकता पैदा करेगा. हमारा देश अपने पारिवारिक मंच के कारण कायम है. हमारे पास अभी भी पारिवारिक मूल्य हैं … हम अभी भी पारिवारिक पृष्ठभूमि और कई अन्य पहलुओं का सम्मान करते हैं.” उन्होंने कहा.
यह बयान उनके द्वारा तब दिया गया जब एलएलबी प्रथम वर्ष के एक छात्र ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि भारत में बलात्कार के कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है? टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार छात्र बलात्कार कानूनों को लिंग तटस्थ बनाने और वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने पर दीपक मिश्रा की राय जानना चाहता था.
भारत में वैवाहिक बलात्कार को किसी कानून या क़ानून में परिभाषित नहीं किया गया है. इसे एक आपराधिक अपराध बनाने के प्रयास में, कई महिला अधिकार समूह विभिन्न मंचों पर लड़ रहे हैं, जिनमें की अदालत भी शामिल है.
मिश्रा 2018 में CJI के पद से सेवानिवृत्त हुए, और इससे पहले, उनके द्वारा मौलिक, संवैधानिक और व्यक्तिगत अधिकारों को बरकरार रखने वाले कई ऐतिहासिक फैसले दिए गए थे, जिनमें भारतीय दंड संहिता की धारा 377 पर ऐतिहासिक निर्णय के साथ समलैंगिकता को जायज़ बताना शामिल था.
सोशल मीडिया पर दीपक मिश्रा द्वारा दिये गये व्यक्त्व पर रोष और निराशा दिखी
Marital rape needn’t be an offence: Ex-Chief Justice of India Dipak Misra https://t.co/a8k8v7OS5r via @TOIBengaluru pic.twitter.com/H40dXM9FP8
— Times of India (@timesofindia) April 9, 2019
Marital rape needn’t be an offence: Ex-Chief Justice of India Dipak Misra https://t.co/a8k8v7OS5r via @TOIBengaluru pic.twitter.com/H40dXM9FP8
— Times of India (@timesofindia) April 9, 2019
2017 में, 2017 में वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के खिलाफ बहस करते हुए, केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया था कि ऐसा करने से विवाह को अस्थिर किया जा सकता है. सरकार के अनुसार, इसका अपराधीकरण पतियों को परेशान करने का मार्ग प्रशस्त करेगा. इसके अलावा, इसने दावा किया कि एक महिला और उसके पति के बीच यौन क्रिया के मामलों में कोई “स्थायी सबूत” नहीं होगा.
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375, जो बलात्कार को परिभाषित करती है, इसमें एक अपवाद खंड है जो कहता है कि “अपनी पत्नी के साथ एक पुरुष द्वारा किया गया संभोग, पत्नी की उम्र पंद्रह वर्ष से कम नहीं होना, बलात्कार नहीं है.”
तर्कसंगत का तर्क
यह देखना दुखद और निराशाजनक है कि जिस व्यक्ति ने समलैंगिकता को निर्णायक मानते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया, वह यह मान सकता है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाना चाहिए.
देश भर में कई महिलाएं अपने पति द्वारा यौन शोषण और बलात्कार का शिकार होती हैं, और उन्हें न्याय देने के लिए कोई कानून नहीं है. महिलाएं अक्सर अपने पति और समाज की प्रतिगामी मानसिकता की शिकार होती हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं है. जबरदस्ती संभोग एक अपराध के अलावा कुछ भी नहीं है, चाहे अपराधी कैसा भी हो.
यह समय है कि सरकार बलात्कार को विभिन्न श्रेणियों में रखना बंद कर दे. बलात्कार की किस्में नहीं होती, चाहे वह किसी अजनबी, परिचित या यहां तक कि पति द्वारा किया गया हो. भारतीय कानून को कुछ बलात्कारियों को दिए गए विशेष प्रावधान को हटाने और यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि वैवाहिक बलात्कार एक वास्तविकता है, जिससे हजारों महिलाएं पीड़ित हैं.
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