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2019 लोकसभा चुनाव : राजीव गाँधी और नरेंद्र मोदी का आमना सामना
Image Credits: Hastakshep
May 10, 2019
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आज कल के चुनावी माहौल में हम सब देख व सुन रहे हैं की किस तरह चुनावी भाषणों का स्तर हर रोज़ नीचे आता जा रहा है चाहे वह बंगाल में ममता हों या उत्तर प्रदेश में आज़म खान. एक दूसरे पर कीचड़ उछालने की कोई कसर नही छोड़ी जा रही. हाल ही में इसका उदाहरण हमारे प्रधानमंत्री ने भी दिया जब उन्होने शनिवार को उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ में रैली को संबोधित करते हुए भूत पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी पर एक ऐसी टिप्पणी की जिसे सही नही माना जा रहा है राहुल गाँधी पर निशाना साधते हुए उन्होने कहा”आपके पिता जी को आपके रागदरबारियों ने मिस्टर क्लीन बना दिया था, लेकिन देखते देखते उनका जीवन काल का अंत भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में हुआ” वह इससे बोफ़ोर्स की ओर इशारा कर रहे थे इस बयान के बाद विपक्ष ने उनकी तीखी आलोचना की व खेद जताया और साथ ही भाजपा और अकाली दल ने 1984 याद दिलाते हुए प्रधानमंत्री का समर्थन किया. इसके बाद राहुल ने ट्विटर पर जवाब दिया और कहा”मोदी जी, युद्ध समाप्त हुआ ,आपके कर्म आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं आपके खुद के विचार जो अपने बारे में है उन्हे मेरे पिता जी पर ना थोपिये, मेरा प्यार स्वीकार करें.”
Modi Ji,
The battle is over. Your Karma awaits you. Projecting your inner beliefs about yourself onto my father won’t protect you.
All my love and a huge hug.
Rahul
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 5, 2019
बोफ़ोर्स की ओर इशारा
”जहां तक बोफ़ोर्स केस की बात है जिसे लेकर यह बयान दिया गया,उसपर 2005 में दिल्ली हाई कोर्ट का जो फैसला है जिसे जस्टिस आर एस सोढी ने दिया था और हिंदुजा बंधुओं समेत सभी आरोपियों को आरोप मुक्त किया और उससे पहले सुनवाई करते हुए जस्टिस जे डी कपूर ने कहा”जहां तक राजीव गाँधी और एस के भटनागर का सवाल है(पूर्व डिफेंस सेक्रेटरी) 16 साल की सी बी आई जांच के बाद सुबूत के तौर पर एक टुकड़ा भी नही मिला जिससे यह साबित होता की राजीव गाँधी और एस के भटनागर ने कोई रीश्वद नही ली. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल भी जब यह केस को दोबारा कोर्ट ले जाने का प्रयास किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई को अस्वीकार कर दिया और हाई कोर्ट के फैसले को जारी रखा। इस आधार पर प्रधानमंत्री का यह बयान निराधार साबित होता है. हालांकि इसमे बयान की भाषा का ज़्यादा कसूर है जिसमे दिवंगत हो चुके पूर्ण प्रधानमंत्री के लिये ऐसे शब्द का प्रयोग हुआ जो किसी भी सभ्य समाज में ठीक नही माना जाता. जब की राजीव गाँधी की आलोचना अक्सर उनके 1984 के सिख कत्लेआम के समय में दिए गए “पेड़ गिरने” के बयान को लेकर होती जो जायज़ भी है लेकिन भारत में आइ टी क्रांति व नवोदय विद्यालयों को मज़बूती देने वाले प्रधानमंत्री पर बेबुनियाद साबित हो चुका भ्रष्टाचार का इल्जाम लगाना गलत है.
आईएनएस विराट विवाद
रामलीला मैदान में बुधवार को एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए विमानवाहक पोत आईएनएस विराट (INS Viraat) का प्रयोग एक द्वीप पर परिवार के साथ छुट्टी मनाने के लिए किया था. मोदी के इस बयान के बाद राजनीतिक घमासान मचा हुआ है. प्रधानमंत्री ने दावा किया कि राजीव गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार और नौसेना ने उनके परिवार एवं ससुराल पक्ष की मेजबानी की और उनकी सेवा में एक हेलीकाप्टर को भी लगाया गया. पीएम मोदी ने कहा, ‘आईएनएस विराट का इस्तेमाल एक निजी टैक्सी की तरह करके इसका अपमान किया गया. यह तब हुआ जब राजीव गांधी एवं उनका परिवार 10 दिनों की छुट्टी पर गये हुए थे. आईएनएस विराट को हमारी समुद्री सीमा की रक्षा के लिए तैनात किया गया था, किन्तु इसका मार्ग बदल कर गांधी परिवार को लेने के लिए भेजा गया जो अवकाश मना रहा था.”
इस बयान के आते के साथ सोशल मीडिया पर भी अफवाह फैली और राजीव गाँधी की आलोचना होने लगी. लेकिन इस बात पर भी विराम लगाने मीडिया चैनलों को बुलाकर रिटायर्ड पूर्व वाइस एडमिरल विनोद पसरिचा ने भी इस बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया है कि राजीव गांधी ने अपने दोस्तों और इतालवी सास के लिए इसका निजी इस्तेमाल किया था. पसरिचा ने कहा है, ”हमलोग त्रिवेंद्रम से चले थे. तब कई द्वीपों पर राजीव गांधी बैठकों के लिए गए थे. राजीव गांधी ने तीन द्वीपों का दौरा हेलिकॉप्टर से किया था.” एडमिरल एल रामदास वेस्टर्न फ्लीट के कमांडर इन-चीफ़ थे और तब वो राजीव गांधी के साथ थे. एडमिरल रामदास का भी कहना है कि राजीव गांधी ने विराट का इस्तेमाल सरकारी दौरे के लिए किया था न कि फैमिली ट्रिप के लिए.
एडमिरल रामदास ने पूरे विवाद पर एनडीटीवी से कहा, ”नौसेना सैर करने के लिए नहीं बनी है और न हम ऐसा करते हैं. हमारी आदत है कि जो भी अतिथि के तौर पर आता है उसका ठीक से देखभाल करते हैं. हमारे प्रधानमंत्री लक्षद्वीप में आईलैंड डेवलपमेंट अथॉरिटी की बैठक के लिए आए थे. हमारे वेस्टर्न फ्लीट उस इलाक़े में तो पहले से थी ही. जब विक्रमदित्य आया तो अभी के प्रधानमंत्री गए थे. इनके साथ कई लोग थे. राजीव गांधी का दौरा भी सरकारी था. हमलोग लड्डू-पेड़ा बाँटने नहीं गए थे. ये तो सेना की बदनामी कर रहे हैं. ये युद्धपोत को टैक्सी की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं. मुझे तो लग रहा है कि अभी ही इस्तेमाल किया जा रहा है. हमने राजीव गांधी को त्रिवेंद्रम से साथ लिया था और उन्होंने चार से पाँच द्वीपों का दौरा किया था.”
इतना ही नहीं बीबीसी की एक रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी वजाहत हबीबुल्लाह ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई को बताया, “मैं प्रधानमंत्री कार्यालय में था. मैं इंदिरा गांधी के कार्यकाल में निदेशक था. जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो मुझे संयुक्त सचिव बनाया गया था. उनके साथ मैंने तीन साल काम किया. केंद्र सरकार में मेरा कार्यकाल समाप्त होने के बाद मेरा तबादला लक्षद्वीप में हो गया था.”
आईएनएस विराट के इस्तेमाल पर वजाहत हबीबुल्लाह कहते हैं कि यह सरासर झूठ है. हालांकि वो कहते हैं कि उस दौरान आईएनएस विराट वहां ज़रूर था, लेकिन वो उनकी सुरक्षा की वजह से वहां था. साथ ही वो कहते हैं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर क्या-क्या इंतजाम किये जाते हैं इसके बारे में हम कभी बात नहीं करते हैं.
उनके साथ गए लोगों की जानकारी देते हुए उन्होनें बीबीसी को बताया, “सोनिया गांधी, उनके दोनों बच्चे राहुल और प्रियंका, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन उनके बच्चे अभिषेक और श्वेता, कपूरथला घराने के ब्रिज और उनकी पत्नी, सोनिया जी की बहन, बहनोई और उनकी मां. लेकिन ये सब उसमें नहीं आए थे जिस हेलिकॉप्टर में राजीव गांधी आए थे. और न ही आईएनएस विराट में. ये सब कवरत्ती में आए और वहां से मैंने उनको भेजा बंगाराम द्वीप.”
तर्कसंगत का तर्क
भाजपा को 2019 चुनाव में अभूतपूर्व विजय प्राप्त हुई, देश की जनता को उन पर भरोसा था और उनके लिए उम्मीद की किरण थी. मगर इन पांच सालों में इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी का भार अब इनके भाषणों में निकलने लगा है, यह बताने की ज़रूरत नहीं कि अब हमारे प्रधानमंत्री अब जो भी व्यक्तव्य देते हैं तो उसे एक एक बार गूगल कर फैक्ट चेक्स कर लेना ज़रूरी भी है और आम बात भी है, और ये सत्ताधारी समर्थक भी करते हैं क्योंकि जाने अनजाने क्यों दूसरों के सामने अपना मिट्टी पलीद करना.
कुल मिला कर बात इतनी सी है हमारे नेताओं को अपने भाषणों में तर्क व नर्मी दोनो लाने की सख्त ज़रूरत है जिससे वे अपने पदों की मर्यादा बनाए रखे उन्हे खयाल करना चाहिये की उनके बयानों और भाषणों के लिये वे ज़िम्मेदार हैं और इन्हे लेकर जनता की तरफ उनकी जवाबदेही है. चुनावों की गरिमा बानाये रखने के लिये और भारत के चुनाव आयोग का सम्मान करते हुए उन्हे अपनी भाषा की मर्यादा बनायी रखनी चाहिये और सतर्क रेहना चाहिये देश की जनता आप को सुन रही है साथ ही परख भी रही है.
हर राजनेता जो प्रधानमंत्री पद पर रह चूका है मृत्यु के बाद उसके प्रति आदर रखते हुए उसे राजनीती में नहीं घसीटा जाना चाहिए. हर सरकार के फैसले गलत और सही होते हैं आप सरकार को मर्यादित भाषा में दोषी ठहरा सकते हैं मगर दिवंगत नेता के प्रति गैर तार्किक बयान आपको ही चोट पहुंचा सकती है. आवेश और सत्ता की चाह में इस चीज़ से बचें. समय के साथ सरकार और समय बदलता है. आज जिस चीज़ पर जनता आपकी पीठ थपथपा रही है हो सकता है भविष्य में आने वाली पीढ़ी आपको कटघरे में खड़ा कर दे.
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