
पर्यावरण
आईआईटी गुवाहाटी ने भारत की पहली बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को घरेलु तकनीक की मदद से विकसित किया
Image Credits: Times Of India
May 15, 2019
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पहली बार, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने घरेलु तकनीक की मदद से बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उत्पादन किया. यह अनोखा प्लास्टिक IIT-G सेंटर ऑफ एक्सीलेंस-सस्टेनेबल पॉलिमर (CoE-SusPol) द्वारा विकसित किया गया था. CoE-SusPol ने इससे पहले छुरी-काँटा, फ़र्नीचर, फूलों के बर्तनों के अलावा भी अन्य वस्तुओं को भी विकसित किया हैं.
बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक
इस बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को CoE-SusPol के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया था और इस परियोजना को रसायन और पेट्रोकेमिकल्स विभाग द्वारा रसायन और उर्वरक संघ के तहत वित्त पोषित/फण्ड-प्रदान किया गया था, जैसा कि द टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा रिपोर्ट में बताया गया था. CoE-SusPol के कोऑर्डिनेटर विमल कटियार ने कहा कि इस बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक ने ‘हॉट-बेवरेज टेस्ट‘ पास कर लिया है. उन्होंने यह भी कहा कि प्लास्टिक अद्वितीय/यूनिक है क्योंकि इसमें कोई खतरनाक रसायन नहीं है. कटियार जी ने यह भी कहा कि CoE-SusPol एकमात्र ऐसा केंद्र है जो बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक पर शोध कर रहा है. कटियार ने कहा, “हालांकि अमेरिका बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का एक प्रमुख उत्पादक रहा है, लेकिन वहां उत्पादन की लागत बहुत अधिक है. लेकिन हमारी टीम ने घरेलू तकनीक का इस्तेमाल करके कम लागत के साथ इसे हासिल करने में कामयाबी हासिल की है. यह अत्याधुनिक इनोवेटिव प्लास्टिक और एक उल्लेखनीय उपलब्धि है”.
कटियार ने आगे कहा कि यह बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक पेट्रोलियम से नहीं आयी है, बल्कि बायो-बेस से प्राप्त हुई है, जो कि पर्यावरण के अनुकूल है. न केवल यह प्लास्टिक अपने आप नष्ट हो जाता है, बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी मदद करेगा.
गुजरात की एक निजी कंपनी ने अपना व्यावसायिक उत्पादन शुरू करने के लिए IIT-G को मदद की पेशकश की है. अब तक, एक बार में लगभग 7-8 किलोग्राम बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उत्पादन किया जा रहा था. कटियार का कहना है कि 100 टन प्रतिवर्ष की क्षमता वाली यह पायलट प्रोजेक्ट सितंबर तक चलेगा. पायलट प्रोजेक्ट के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद इससे व्यावसायिक उत्पादन होगा.
तर्कसंगत का तर्क
प्लास्टिक प्रदूषण प्रमुख पर्यावरणीय चिंताओं में से एक बन गया है. यह कहना एक समझदारी होगी कि प्लास्टिक की वस्तुएं, जिन्हें पूरी तरह से नष्ट होने में वर्षों का समय लगता है, वस्तुतः पर्यावरण को प्रभावित कर रही हैं. हालाँकि, यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि प्लास्टिक हमारे जीवन में लगभग एक अनिवार्य हिस्सा बन गयी है. यह बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक पूरी तरह से बीच की जमीन की सतह को नुकसान पहुंचाती है. तर्कसंगत इस अद्भुत कार्य के लिए वैज्ञानिकों की टीम को बधाई देता है.
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