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मेहदिया फ़ातिमा : सोलो राइडिंग के अपने शौक को वापस पाने में मुझे लगभग 20 साल लग गए.
Image Credits: Wrangler/Facebook/Mehdia Fathima
September 9, 2019
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हम सभी अपनी ज़िन्दगी में कुछ ख्वाइशों और शौकों के साथ जीते हैं, कुछ ख़ुशनसीब होते हैं जो समय रहते अपने ख्वाइश और शौक को पूरा करते हैं. कुछ ऐसे भी होते हैं जो एक उम्र के बाद अपने शौक को उम्र का हवाला दे कर जाने देते हैं, मगर इन्ही सब के साथ कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी उम्र को अपनी ख्वाइश के रास्ते में नहीं आने देती. आज हम ऐसी ही शख़्स के बारे में आपको बताने जा रहे हैं.
मेहदिया फातिमा भी खुद को अपने जीवन, करियर और बच्चों की पढ़ाई में व्यस्त रखती थी. लेकिन लगभग चार साल पहले, उन्होनें अपने सांसारिक दैनिक दिनचर्या से छुट्टी ले ली और एक सोलो बाइक सवार के रूप में खुद की खोज शुरू की. “अपने कॉलेज के दिनों के दौरान, मुझे बाइक राइडिंग में दिलचस्पी थी और एक दोस्त से सीखा भी. अब अपने शौक को वापस पाने में मुझे लगभग 20 साल लग गए. इतने वक़्त, मुझे इसे आगे बढ़ाने के बारे में सोचने का समय नहीं मिला. मुझे अपना करियर बनाना था, अपने बच्चों और परिवार की देखभाल करना” फातिमा ने कहा न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा.
आज, 48 वर्षीय एकल बाइकर दो सोलो ट्रिप कर चुकी है – गोल्डन क्वाड्रिलेटरल राइड और इंडियन कोस्टलाइन राइड – दोनों मिलाकर लगभग 15,500 किलोमीटर की दूरी है जो इन्होनें अकेले पूरी की है. उन्होंने कहा, “मैं हमेशा से ही टू-व्हीलर को पसंद करती हूं, लेकिन बाइक में मेरी दिलचस्पी उस वक़्त दोबारा जगी जब एक सहयोगी ने साढ़े तीन साल पहले अपनी बाइक को चलाने का मौका दिया. मैंने एक बजाज एवेंजर 220 क्रूज खरीदा और अपने सहयोगियों और एवेंजर क्लब के साथ समूह की सवारी में भाग लेना शुरू कर दिया. एक बार जब मैंने दूसरे क्लब के साथ एक ग्रुप राइड में भाग लिया और वे लगभग 10 किमी / घंटे की रफ्तार से हाइवे पर दौड़ रहे थे, जिससे मैं असहज महसूस कर रही थी. जब हम किसी ग्रुप में ट्रिप पर जाते हैं तो हमें दूसरों की स्पीड और आराम का भी सोचना होता है. इसके बाद मैंने सोलो राइड शुरू की.”
अपनी गोल्डन क्वाड्रिलेटरल राइड में, उन्होंने तीन हफ्तों में 16 भारतीय राज्यों से गुज़री और इंडियन कोस्टलाइन राइड के लिए चार सप्ताह से अधिक का समय लिया. “हर ट्रिप के लिए मेरी तैयारी उससे दो महीने पहले शुरू होती है. मेरी साड़ी ट्रिप सेल्फ फंडेड होती है.” फातिमा, जो दो किशोरों की मां हैं, उन्होनें बताया कि सोलो राइड करने का निर्णय लेने पर उन्हें आलोचना का सामना भी करना पड़ा. “कई लोगों ने पूछा कि मैं इस उम्र में क्या साबित करना चाहती हूं. मेरा सवाल यह है कि एक महिला को हमेशा हर चीज के लिए खुद को साबित क्यों करना चाहिए? हमें यह साबित करना होगा कि हम कार्यस्थल, घर वगैरह में पुरुषों के बराबर या उससे बेहतर हैं? सिर्फ लिंग रूढ़िवादिता नहीं, वह महिला राइडरों की बराबरी पर भी सवाल उठाती है. “मैं हमेशा हिजाब पहनती हूं. वास्तव में, सवारी करते समय, हिजाब धूल और सूरज के संपर्क से अधिक सुरक्षा देता है. मुझे नहीं लगता कि देश में महिलाओं के लिए सोलो ड्राइविंग सेफ नहीं है. विभिन्न स्थानों पर लोगों के दृष्टिकोण में अंतर हैं. लेकिन अगर आप एक सामान्य यात्री हैं और रात की ट्रिप से बचते हैं, तो मुझे लगता है कि हमारे राजमार्ग सभी सवारों के लिए सुरक्षित हैं.
फातिमा, एक आईबीएम कर्मचारी जो अपने परिवार के साथ आरटी नगर में रहती है -उनके पति एफएमसीजी कंपनी के साथ काम करते है – उन्होनें जनवरी में अपनी आखिरी सोलो राइड पूरी की.
“मेरी इंडियन कोस्टलाइन राइड के दौरान, मैंने देश भर के मछुआरों के समुदाय के साथ बातचीत की और महसूस किया कि मैं एक शहर में रहने के कारण कितनी खुशनसीब हूं. मैंने अन्य संस्कृतियों और लोगों से आत्मविश्वास, धैर्य और सहनशीलता सीखी है. मैं बाइक राइडिंग समुदाय के लिए कुछ करना चाहती थी और मैंने बाइक राइडिंग मुफ्त में सिखाना शुरू कर दिय.” फातिमा ने कहा, उन्होनें अपने पहले बैच के साथ एक कोर्स पूरा किया और जल्द ही एक और करने की योजना बना रही है.
“कन्याकुमारी से कश्मीर मेरी अगली यात्रा है जो मैं दिसंबर में योजना बना रही हूं. मैं अब अपनी बाइक अपग्रेड करना चाहता हूं. ट्रायम्फ टाइगर 800 मेरी ड्रीम बाइक है. चूंकि बाइक की सवारी हमेशा एक पुरुष-प्रधान क्षेत्र रहा है, इसलिए महिलाओं को शायद ही कभी अपनी ऊंचाई और आकार के अनुसार अच्छी बाइक मिलती है. महिलाओं के लिए अधिक बाइक का उत्पादन होना चाहिए.”
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