
मेरी कहानी
मेरी कहानी : मैं मणिपुर की पहली महिला ऑटो ड्राइवर हूँ, मगर मेरे बच्चे इससे अपमानित महसूस करते थे
Image Credits: Time8/Dailyhunt
October 3, 2019
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मेरी मेहनत का लोग मजाक उड़ाते थे, लेकिन मेरे पास बहुत कम विकल्प थे। तब मेरा एक ही लक्ष्य था- अपने बेटों को अच्छी शिक्षा देना। अब वे मुझे सम्मान देते हैं। यहां तक कि ट्रैफिक पुलिस भी मुझे ‘सलाम’ करती है। अब मुझे किसी से कोई नाराज़गी नहीं है।
मणिपुर में महिलाएं केवल मजदूरी, गो-पालन या फिर बुनाई का काम करती हैं। ऐसे में जब एक महिला पुरुषों के करियर क्षेत्र में अपने को स्थपित करने का प्रयास करती है, तो दिक्कत आती ही है। मैं मणिपुर की रहने वाली हूं। मेरे पति को मधुमेह की बीमारी और शराब पीने की लत थी। शादी के कुछ वर्षों बाद मेरे दो बच्चे हुए। इससे पहले कि बच्चे बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े होते, मेरे पति पूरी तरह से बीमारी की गिरफ्त में आ गए। वह घर पर ही रहने लगे। घर-परिवार की जिम्मेदारी संभालने के लिए मैंने एक ईंट-भट्ठे पर काम करना शुरू कर दिया। चूंकि पहले उस तरह के काम करने की आदत नहीं थी, ऐसे में कुछ ही दिन में मैं वहां पर परेशान हो गई।
इसके बाद मैंने ईंट-भट्ठे पर काम करने का विचार छोड़ दिया और बाहर निकल कुछ करने के बारे में सोचने लगी। मैंने रिक्शा चलवाने के बारे में विचार किया। चूंकि पहले मुझे चलाना नहीं आता था, तो मैंने चिट फंड के माध्यम से पैसा इकट्ठा किया और एक सेकंड हैंड ऑटो-रिक्शा खरीदकर उसे किराये पर देने का फैसला किया। लेकिन, दो वर्ष में कई गैर-जिम्मेदार ड्राइवरों से मेरा सामना हुआ, परिणामस्वरूप रिक्शे से कमाई होने की जगह उसमें निवेश ज्यादा ही बढ़ गया। यह मेरे और मेरे परिवार के लिए बेहद संकट का समय था, मैं खाने तक की व्यवस्था किसी तरह से कर पाती थी। पैसे न होने के कारण मेरे बेटों को स्कूल भी छोड़ना पड़ा।
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