
सप्रेक
मिलिए रोड के डॉक्टर से जो सड़कों पर बने गड्ढों को भरने का करते हैं काम
Image Credits: Deccan Chronicle/The Weekend Leader
October 29, 2019
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इंडिया में इलाज की जरूरत इंसानों के अलावा सड़कों को भी होती है। यह बात जानते सब हैं, लेकिन रेलवे के एक रिटायर्ड इंजीनियर इलाज करने में जुट गए। अब तक करीब 1300 गड्ढे भर चुके आंध्र प्रदेश के गंगाधर तिलक कत्नम को सड़क का डॉक्टर कहा जाने लगा है। सफेद बाल, मोटे फ्रेम वाला चश्मा, वृद्धावस्था की अवस्था की ओर अग्रसर आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले के रहने वाले गंगाधर तिलक कत्नम पिछले काफी दिनों से अपने मिशन पर लगे हैं।
कत्नम ने 35 वर्षों तक रेलवे की नौकरी की। रिटायरमेंट के बाद कत्नम कुछ दिनों के लिए अपने बेटे के पास अमेरिका चले गए। जब लौटकर आए तो हैदराबाद स्थित एक सॉफ्टवेयर कंपनी में सलाहकार के तौर पर काम करने लगे।
एकदिन वह अपने ऑफिस जा रहे थे, तभी रास्ते में उनकी कार का पहिया एक गड्ढे में चला गया। इससे कुछ स्कूली बच्चों के ऊपर कीचड़ उछलकर जा लगा। गड्ढों के कारण वह एक दुर्घटना भी देख चुके थे। इस घटना के बाद उन्हें इन्हीं गढ्ढों की वजह से कुछ दुर्घटनाओं के बारे में मालूम चला। उन्होंने इसके बारे में पुलिस से बात भी की और कहा कि सड़क पर मौजूद गढ्ढे ही दुर्घटना का प्रमुख कारण हैं। उनकी शिकायत पर एक गढ्ढा तो पाट दिया गया, लेकिन तिलक के मन में ये बात कौंधती ही रही। वह बताते हैं, ‘पुराने शहर में लैंगर हाउस के पास वाले इलाके में मैंने तीन -चार दिन पहले ही एक ऐक्सिडेंट देखा था। एक सरकारी बस ने ऑटो में टक्कर मार दी थी जिससे ऑटो ड्राइवर की मौके पर ही मौत हो गई। यह देखकर मेरे होश उड़ गए। मुझे लगा कि अगर सड़कों पर ये गढ्ढे नहीं होते तो कितनी जानें बचाई जा सकती थी।’
उन्होंने अध्ययन किया तो पाया कि ज्यादातर सड़क दुर्घटनाएं इन्हीं गड्ढों के कारण होती हैं। कत्नम ने ठान लिया कि बाकी जिंदगी सड़क के गड्ढे भरने में बिताएंगे। उन्होंने श्रमदान नाम की मुहिम शुरू की। धीरे-धीरे स्कूल और कॉलेजों के बच्चे उनका हाथ बंटाने लगे। इसके बाद तिलक ने सड़कों के गढ्ढे भरने का काम शुरू कर दिया। वे अपनी कार में हमेशा टाट के बोरे रखते थे और जहां कहीं भी गढ्ढा देखते उसे भरने की कोशिश करते। इस दौरान वे नौकरी भी कर रहे थे और जब भी वक्त मिलता गढ्ढों को पाटने के लिए निकल जाते। इसके बाद उन्होंने 2011 में एक साल के लिए नौकरी छोड़ दी और पेंशन के पैसों से सड़कों को सही करने का जिम्मा संभाल लिया। इससे उनकी पत्नी को थोड़ा अजीब लगा क्योंकि वो नहीं चाहती थीं कि उनके पति कड़कती धूप में ऐसा काम करें। उन्होंने तो अमेरिका में रह रहे बेटे को भी फोन कर दिया कि वह यहां आकर देखे कि उनके पापा क्या कर रहे हैं, बेटा भी कत्नम के ही स्वभाव का निकला और उसने पिता को रोकने के बजाय उनका फेसबुक पेज और वेबसाइट बना दी।
कत्नम के इस काम को देख प्रशासन ने उनसे कहा कि वह यह न करें, सरकारी कर्मचारी काम करेंगे। लेकिन कत्नम को सरकारी रवैये का पता था, इसलिए वह लगे रहे। बाद में उन्हें गड्ढे भरने के सामाग्री प्रशासन की तरफ से दी जाने लगी। कत्नम सड़के के गड्ढे भरने के लिए किसी तरह की आर्थिक राशि नहीं लेते हैं, हां अगर कोई शरीर से श्रमदान देना चाहता है तो उसका स्वागत है।
तर्कसंगत का तर्क
तर्कसंगत गंगाधर तिलक कत्नम के इस अभियान की सराहना करता है, जहाँ रिटायरमेंट के बाद एक ओर जहां आमतौर पर लोग अपनी जिंदगी आराम से बिताने की ख्वाहिश रखते हैं तो वहीं दूसरी ओर तिलक ने सड़कों के गढ्ढे भरने का काम करके अपनी जिंदगी को समाजसेवा की खातिर समर्पित करने का फैसला कर लिया, हमें उम्मीद है कि उनकी इस नेक कामों का असर दूसरों पर भी पड़े।
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