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कैसे पूरा हुआ मुंबई स्लम्स से अमेरिका के विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक बनने तक का सफर
Image Credits: Punjab Kesari
February 12, 2020
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मुंबई के कुर्ला वेस्ट की गौरी शंकर चॉल के छोटे से कमरे में रहने वाला 24 बरस का जयकुमार वैद्य आज एक वैज्ञानिक हैं जिन्होंने पीएचडी करने के लिए मुंबई में एक झुग्गी-झोपड़ी की सड़कों से लेकर वर्जीनिया विश्वविद्यालय तक का सफर तय किया है।
वह विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर विज्ञान इंजीनियरिंग विभाग में नैनो-टेक्नोलॉजी, नैनो-ऑसिलेटर्स, नैनो-स्केल डिवाइस एप्लीकेशन एंड आर्किटेक्चर का अध्ययन कर रहे हैं। और यह साबित कर दिया कि कई बार मजबूरी में छोटी चादर में ही पांव समेटने की बजाय चादर को बड़ा करने की कोशिश भी करना चाहिए।
जयकुमार के लिए जिंदगी कभी आसान नहीं थी। उसका बचपन बहुत बेबसी में गुजरा। उसकी मां नलिनी ने पति से तलाक के बाद कई तरह के काम किए और अपने बेटे को अकेले दम इस बेरहम दुनिया में उसका मुनासिब हक दिलाने की जिद ठान बैठी। 15 सितंबर 1994 को जन्मे जयकुमार ने छुटपन से ही अपनी मां को संघर्ष करते देखा।
मां एक पैकेजिंग फर्म में 8000 रूपए की नौकरी करती थी, लेकिन 2003 में वह नौकरी छूटने के बाद घर का खर्च चलाने और जयशंकर की फीस भरने के लाले पड़ गए। कई बार तो फीस न भरने के कारण जयकुमार को परीक्षा में बैठने नहीं दिया गया। कई बार दोनो को एक ही वक्त वड़ा पाव या समोसा खाकर गुजारा करना पड़ा। 11 साल की उम्र में छठी कक्षा में पढ़ने वाला जयकुमार टेलीविजन मरम्मत की दुकान पर तो कभी कपड़े की दुकान पर छोटी मोटी नौकरी करने लगा। दोनों की कमाई से भी मुंबई जैसे शहर में घर चलाना आसान नहीं था।
आसपास के लोगों और नाते रिश्तेदारों ने भी मदद से इंकार कर दिया तो एक स्थानीय मंदिर ट्रस्ट ने उन दोनों की मदद की। ट्रस्ट ने दोनों को पुराने कपड़े, राशन, रोजमर्रा की जरूरत का कुछ कुछ सामान और जयकुमार की स्कूल की फीस भरने में सहायता की। स्कूली पढ़ाई के बाद कॉलेज की फीस अदा करने के लिए बड़ी रकम चाहिए थी।
बैंकों से कर्ज लेने के प्रयास सफल नहीं हो सके क्योंकि आमदनी का कोई स्थायी जरिया नहीं था। ऐसे में इंडियन डेवलपमेंट फाउंडेशन ने जयकुमार को बिना ब्याज का कर्ज दिया और उसे केजे सोमैया कालेज ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया। फाउंडेशन के सीईओ डा. नारायण अय्यर कहते हैं कि जयकुमार की मेहनत और उसका आगे बढ़ने का जज्बा उसके जैसे बहुत से बच्चों को प्रेरणा देगा। कालेज में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान जयकुमार को रोबोटिक्स में राष्ट्रीय स्तर के तीन और राज्य स्तर के चार पुरस्कार मिले।
इस दौरान उन्होंने नैनोफिजिक्स विषय में अपनी रूचि को देखते हुए इसी दिशा में आगे बढ़ने का इरादा किया। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें लार्सन और टूब्रो में इन्टर्नशिप का मौका मिला और वहां से उन्हें टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च में 30 हजार रूपए महीने की नौकरी मिल गई।
यहां से जयकुमार को यह एहसास होने लगा कि बरसों से रूठी किस्मत को किसी ने उसके घर का रास्ता भी दिखा दिया है। जयकुमार ने अपनी कमाई से अपने छोटे से घर की मरम्मत कराई। जरूरत के वक्त लोगों से लिया छोटा मोटा कर्ज चुकाया और जीआरई तथा टोफल की परीक्षा के लिए आवेदन किया। अपने बढ़ते खर्च को पूरा करने के लिए वह डिजिटल इलेक्ट्रानिक्स, सर्किट एंड ट्रांसमिशन लाइंस, सिगनल्स एंड सिस्टम्स और कंट्रोल सिस्टम्स पर कोचिंग देने लगे।
टीआईएफआर में जूनियर रिसर्च एसोसिएट के तौर पर काम करते हुए 2017 और 2018 में जयकुमार के दो शोध पत्र अन्तरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हुए, जिन पर वर्जीनिया यूनिवर्सिटी की नजर पड़ी और उन्हें यूनिवर्सिटी ने ग्रेजुएट रिसर्च असिस्टेंट के तौर पर पांच साल के शोध के लिए अपने यहां आमंत्रित किया। टीआईएफआर में उनके संरक्षक प्रो एम देशमुख ने जयकुमार की उपलब्धियों का श्रेय उसके कठिन परिश्रम को देते हुए कहा कि वह असाधारण रूप से परिश्रमी है और उन्होंने अपने जीवन में उसके जैसा छात्र नहीं देखा।
संस्थान में तीन वर्ष की उनकी मेहनत ही उनके पीएच.डी प्रोग्राम तक का रास्ता बनी। नैनो एंड माइक्रोटैक्नोलॉजी में भारत को महाशक्ति बनाने का सपना देखने वाले जयकुमार का कहना है कि वह दो साल के भीतर अपनी मां को भी अमेरिका लाना चाहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि उनकी मां दुनिया की तमाम खुशियों की हकदार है।
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