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उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में क्यों बढ़ रहा बाघ और इंसानी संघर्ष?
May 15, 2020
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”मेरे पापा खेत में सो रहे थे, उन्हें बाघ उठा ले गया और खा गया।” यह बात कहते हुए 18 साल के गुरप्रीत का गला भर आता है। वो कुछ देर रुककर बस इतना कहते हैं, ”बाघों को जंगल से बाहर नहीं आने देना चाहिए।”
गुरप्रीत सिंह उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के रसौला कोठी गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता निंदर सिंह (65) की मौत इसी साल तीन अप्रेल को बाघ के हमले से हो गई। यह एकलौता मामला नहीं है, बल्कि पीलीभीत जिले के टाइगर रिजर्व से सटे ग्रामीण इलाके में इस साल की शुरुआत से लेकर अबतक करीब छह ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें चार लोगों की जान गई है। इन घटनाओं से डरे हुए किसानों की ओर से प्रशासन को बार-बार खत लिखकर यह गुहार लगाई जाती रही है कि टाइगर रिजर्व की सोलर फेंसिंग कराई जाए ताकि बाघ जंगल से बाहर न आ सकें, लेकिन मामला सिफर ही रहा।
पीलीभील के पंचखेड़ा गांव के रहने वाले किसान और भारतीय किसान यूनियन के नेता मंजीत सिंह (40) कहते हैं, ”हमने स्थानीय प्रशासन के सामने कई बार यह मांग उठाई है कि जंगल में फेंसिंग की जाए, लेकिन कुछ खास होता नहीं है। इसकी वजह से आए दिन इलाके के किसान बाघ के हमलों का शिकार हो रहे हैं। इसी महीने की शुरुआत में बाघ ने एक किसान पर हमला किया है।” मंजीत जिस बाघ का जिक्र कर रहे हैं वो इस क्षेत्र में आतंक का पर्याय बना हुआ था। इसी महीने की तीन तारीख को जब वन विभाग की टीम इस बाघ को टैंकुलाइज कर रही थी तो उसकी मौत हो गई।
इन घटनाओं से एक सवाल उठता है कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटे इलाकों में बाघ और इंसानी संघर्ष क्यों बढ़ रहा है? इस सवाल का जवाब देते हुए डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) नवीन खंडेलवाल कहते हैं, ”यह बात सच है कि इस इलाके में बाघ और इंसानी संघर्ष बढ़ा है। इसका मुख्या कारण यह है कि पीलीभीत के टाइगर रजर्व में जितने बाघ रह सकते हैं, उससे कहीं ज्यादा बाघ हो गए हैं। अभी इस जंगल में अनुमानित बाघ की संख्या 65 है, जब अंतिम गणना हुई थी तो 54 बाघ थे।”
दूसरा यह कि पीलीभीत का टाइगर रजर्व 730 स्क्वायर किलोमीटर में फैला हुआ है। इसकी लंबाई तो अच्छी खासी है, लेकिन चौड़ाई कम है। जंगल की चौड़ाई कहीं 10 किलोमीटर तो कहीं सिर्फ तीन किलोमीटर तक है। ऐसे में बाघ अपना इलाका तय करते हैं तो जो बाघ जवान होते हैं वो बूढ़े होते बाघों को बाहर खदेड़ देते हैं। साथ ही कई बार शिकार का पीछा करते हुए बाघ जंगल से बाहर निकल जाते हैं।”
पीलीभीत के टाइगर रिजर्व में बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ही उत्तर प्रदेश के वन विभाग ने टाइगर रिजर्व से कुछ बाघों को दूसरे रिजर्व में शिफ्ट करने का प्रस्ताव भी भेजा था, हालांकि अभी उसपर आखरी मुहर नहीं लगी है। बाघों को शिफ्ट करने की योजना पर डीएफओ नवीन खंडेलवाल कहते हैं, ”हमने कई बार यह प्रस्ताव भेजा है, लेकिन अभी कुछ तय नहीं है।”
पीलीभीत के जंगल में बाघों की संख्या इसलिए भी तेजी से बढ़ रही है कि यहां पानी और खाना पर्याप्त मात्रा में है। बाघ के अलावा तेंदुए भी जंगल में बढ़े हैं। वन विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि जंगल में बाघ की संख्या इतनी ज्यादा है कि तेंदुए जंगल से बाहर ही रहते हैं। इसके अलावा बहुत से बाघ भी जंगल से सटे गन्ने के खेतों में रहते हैं।
पीलीभीत के रहने वाले पर्यावरणविद टी.एच. खान टाइगर रिजर्व के आस पास जानवरों और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष को लंबे वक्त से मॉनिटर करते आ रहे हैं। वो बताते हैं, ”पीलीभीत टाइगर रिजर्व की चौड़ाई कम होने की वजह से कई बार बाघ जंगल से निकलकर आस पास के गन्ने के खेत में चले जाते हैं। बाघ जंगल में नरकुल के आस-पास रहते हैं, वहां नमी होती है, यही माहौल उसे गन्ने के खेत में भी मिलता है और उसे दोनों का अंतर समझ नहीं आता। इस बीच अगर वहां कोई इंसान आ जाता है तो फिर संघर्ष होता है।”
इस संघर्ष से बचने के लिए टी.एच. खान सोरल फेंसिंग लगाने को कारगर मानते हैं। वो कहते हैं, ”जानवर जंगल से बाहर न जाएं इसके लिए सोरल फेंसिंग 80 प्रतिशत तक कारगर है। सरकार को इस पर काम करना चाहिए।” पीलीभीत के टाइगर रिजर्व के अधिकारी भी यह मानते हैं कि जंगल की सोलर फेंसिंग जरूरी है, इससे फायद मिलेगा।
डीएफओ नवीन खंडेलवाल कहते हैं, ”हमने पिछले पांच साल में अलग-अलग योजनाओं से करीब 50 किलोमीटर की सोलर फेंसिंग कराई है। जंगल के 149 किलोमीटर के दायरे में सोलर फेंसिंग करने का प्रस्ताव भी हमने भेजा था, लेकिन उस पर कुछ हुआ नहीं। इसके बाद हाल ही में हमने 50 किलोमीटर सोलर फेंसिंग कराने का प्रस्ताव भेजा है, लेकिन हमें लखनऊ से सूचना नहीं मिली है कि इसका स्टेटस क्या है। हमने इस साल 11 किलोमीटर फेंसिंग कराई है, हमारी कोशिश रहती है कि हर साल कुछ न कुछ कराएं, क्योंकि हमार बजट लिमिटेड है तो उसी हिसाब से काम कराना है।”
बाघ के हमलों को लेकर उत्तर प्रदेश वन विभाग और वाइल्ड लाइफ ऑफ इंडिया की एक संयुक्त रिपोर्ट भी आयी थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पीलीभीत में 2018 के मार्च महीने तक छह लोगों की मोत बाघ के हमले से हुई थी। वहीं, 2017 में पांच अलग-अलग बाघों के हमले में 21 लोग मारे गए थे। एक बाघ को नरभक्षी घोषित करते हुए फरवरी 2017 में लखनऊ चिड़ियाघर भेजा गया था।
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