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प्रणब मुख़र्जी: भारतीय राजनीति में पत्रकारिता से पदार्पण और राष्ट्रपति पद से विदा हुए, कुछ रह गया तो था प्रधानमंत्री पद
September 1, 2020
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कई दिनों से डीप कोमा में चल रहे भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार को 84 साल की उम्र में निधन हो गया। 77 साल की उम्र में राष्ट्रपति बनने वाले मुखर्जी ने अपने जीवन में कई बड़ी जिम्मेदारियां निभाई।
वे मस्तिष्क में रक्त के एक थक्के के ऑपरेशन के लिए अस्पताल गए थे जहाँ वो जाँच में कोरोना पॉज़िटिव भी पाए गए थे। 10 अगस्त को उन्होंने स्वयं ट्वीट कर इसकी जानकारी दी थी।
On a visit to the hospital for a separate procedure, I have tested positive for COVID19 today.
I request the people who came in contact with me in the last week, to please self isolate and get tested for COVID-19. #CitizenMukherjee— Pranab Mukherjee (@CitiznMukherjee) August 10, 2020
स्वतंत्रता सेनानी के घर जन्म
प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिरती गांव में एक बंगाली परिवार में हुआ था।
उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी स्वतंत्रता सैनानी थे। मुखर्जी ने सूरी विद्यासागर कॉलेज से स्नातक करने के बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर और LLB की डिग्री हासिल की थी।
उनकी शुरू से ही राजनीति और कानून में बड़ी रुचि थी और इसी ने उन्हें राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाया।
पत्रकारिता भी की थी
मुखर्जी ने अपने करियर की शुरुआत साल 1963 में कलकत्ता के पोस्ट और टेलीग्राफ कायार्लय में एक अपर डिवीजन क्लर्क (UDC) के रूप में की थी। हालांकि, कुछ समय बाद ही उन्होंने विद्यानगर कॉलेज में राजनीतिक विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर कार्यभार ग्रहण कर लिया।
राजनीति के मैदान में उतरने से पहले उन्होंने देशर डाक (मातृभूमि की पुकार) मैगजीन में पत्रकारिता भी की थी। बाद में वह दिग्गज नेता साबित हुए।
पढ़ने के थे शौकीन
प्रणब मुखर्जी को हमेशा पढ़ने-लिखने का शौक रहा। उनकी निजी लाइब्रेरी में आत्मकथाओं से लेकर दर्शन, इतिहास और अर्थशास्त्र पर सैकड़ों किताबें थीं। एक बार की गई उनकी टिप्पणी ‘एशिया माइनस इंडिया इज़ लाइक हेमलेट विदआउट डेनमार्क’ से पता चलता है कि अंग्रेज़ी साहित्य पर भी उनकी पकड़ काफ़ी मज़बूत थी।
अपने जीवन की शुरुआत से ही उन्होंने अपने पिता की एक आदत अपनाई, वो थी दुनिया भर में हो रही घटनाओं को सिलसिलेवार अपनी डायरी में रोज़ लिखना। अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी एक बार टाइम पत्रिका को बताया था कि उनको भी दुनिया भर की घटनाओं को अपनी डायरी में लिखने की आदत थी। यही वजह थी कि प्रणब मुखर्जी को हमेशा उनकी ‘फ़ोटोग्राफ़िक’ याददाश्त के लिए जाना गया।
इंदिरा गांधी के कहने पर थामा कांग्रेस का हाथ
मुखर्जी ने साल 1969 में इंदिरा गांधी ने ऑफर पर कांग्रेस का हाथ थामा था। इसी साल इंदिरा गांधी की मदद से वह राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचे थे। उनकी राजनीतिक समझ और बेहतरी कार्य का ही प्रभाव था कि वह साल 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्यसभा के लिए चुने गए।
इंदिरा गांधी उनकी राजनीतिक समझ कि इतनी बड़ी कायल थी कि उन्हें कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा दे दिया था वो इसलिए क्यूंकि प्रणब के बौद्धिक स्तर और उनकी योग्यता को देखते हुए इंदिरा गाँधी ने लिखित आदेश जारी करवा दिया था कि उनकी अनुपस्थिति में मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता प्रणब मुखर्जी करेंगे।
मुखर्जी की काबिलियत के कारण इंदिरा गांधी ने साल 1973 में आर वेंकटरामन, पीवी नरसिम्हाराव, ज्ञानी जैल सिंह, प्रकाश चंद्र सेठी और नारायण दत्त तिवारी जैसे कद्दावर नेताओं पर तहरीज देते हुए मुखर्जी को राजस्व और बैंकिंग मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दे दिया।
कई सारे महत्वपूर्ण पदों पर रहे
मुखर्जी की काबिलियत के कारण इंदिरा गांधी ने साल 1973 में आर वेंकटरामन, पीवी नरसिम्हाराव, ज्ञानी जैल सिंह, प्रकाश चंद्र सेठी और नारायण दत्त तिवारी जैसे कद्दावर नेताओं पर तहरीज देते हुए मुखर्जी को राजस्व और बैंकिंग मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दे दिया।1982 से 1984 तक वित्त मंत्री रहे। उन्होंने रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, लोकसभा नेता, राज्यसभा नेता जैसे पद संभाले।
उसके बाद वह मनमोहन सिंह की सरकार में 2009 से 2012 तक वित्त मंत्री रहे और चार बार बजट पेश किया।
‘यूरोमनी’ पत्रिका ने उन्हें दुनिया के बेहतरीन वित्त मंत्रियों में से एक माना। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भारत के लिए सबसे बड़े ऋण के लिए बातचीत की, लेकिन उनको सबसे बड़ी शाबाशी तब मिली, जब उन्होंने ऋण के एक तिहाई हिस्से को बिना इस्तेमाल किए हुए आईएमएफ़ को लौटा दिया।
जिम्मेदार और सीनियर नेता होने पर भी प्रधानमंत्री नहीं बन सके
31 अक्टूबर, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में मुखर्जी का नाम भी चर्चा में था, लेकिन पार्टी ने राजीव गांधी को चुन लिया। दिसंबर 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 414 सीटें जीतीं, लेकिन मुखर्जी को कैबिनेट में जगह नहीं मिली।
इसके बाद साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में भी कांग्रेस सत्ता में आई। सभी को उम्मीद थी कि मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। पार्टी ने पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बना दिया। इस कैबिनेट में मुखर्जी को पहले योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर 1995 में विदेश मंत्री बना दिया गया। इसी तरह वह 24 अक्टूबर, 2006 से 22 मई, 2009 तक मनमोहन सरकार में भी विदेश मंत्री रहे।
प्रणब मुखर्जी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने की बस तब मिस की, जब सोनिया गाँधी ने ख़ुद प्रधानमंत्री का पद ठुकराने के बाद पार्टी में नंबर दो प्रणब मुखर्जी के स्थान पर राज्यसभा में कांग्रेस के नेता मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना।
ये वही मनमोहन सिंह थे, जिनका इंदिरा गाँधी के शासनकाल में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के पद का नियुक्ति पत्र प्रणब मुखर्जी ने वित्त मंत्री के तौर पर साइन किया था। प्रणब मुखर्जी ने एक ज़माने में उनके अंडर काम करने वाले मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाए जाने का कभी सार्वजनिक तौर पर विरोध नहीं किया।
राष्ट्रपति पद के लिए बनाया गया उम्मीदवार
सोनिया गांधी ने 15 जून, 2012 को मुखर्जी को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया था। इसके बाद उन्होंने पीए संगमा को हराकर राष्ट्रपति पद हासिल किया था। उन्होंने 25 जुलाई, 2012 से 25 जुलाई, 2017 तक देश के 13वें राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला था।
भारत रत्न से सम्मानित
मुखर्जी के देश के प्रति योगदान की बदौलत 8 अगस्त, 2019 को भाजपा सरकार में उन्हें देश के सबसे बड़े सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था। इस सम्मान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा था कि कांग्रेस सरकार में नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह को ‘भारत रत्न’ नहीं मिला।
समस्त नेताओं में शोक की लहर
सोमवार को शाम पौने छह बजे के क़रीब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे और पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट करके उनकी मौत की पुष्टि की।
With a Heavy Heart , this is to inform you that my father Shri #PranabMukherjee has just passed away inspite of the best efforts of Doctors of RR Hospital & prayers ,duas & prarthanas from people throughout India !
I thank all of You 🙏— Abhijit Mukherjee (@ABHIJIT_LS) August 31, 2020
देश के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट करके पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन पर दुख जताया है।
Sad to hear that former President Shri Pranab Mukherjee is no more. His demise is passing of an era. A colossus in public life, he served Mother India with the spirit of a sage. The nation mourns losing one of its worthiest sons. Condolences to his family, friends & all citizens.
— President of India (@rashtrapatibhvn) August 31, 2020
प्रधानमंत्री ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया। उन्होंने लिखा है, “भारत रत्न श्री प्रणब मुखर्जी के निधन पर भारत शोकाकुल है। हमारे राष्ट्र के विकास के पथ पर उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी है। एक विद्वान, ऊंचे कद के राजनेता जिन्हें सभी समुदायों और राजनीतिक वर्गों में सराहा गया।”
India grieves the passing away of Bharat Ratna Shri Pranab Mukherjee. He has left an indelible mark on the development trajectory of our nation. A scholar par excellence, a towering statesman, he was admired across the political spectrum and by all sections of society. pic.twitter.com/gz6rwQbxi6
— Narendra Modi (@narendramodi) August 31, 2020
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए पूर्व कांग्रेसी नेता की मौत पर दुख जताया है।
उन्होंने ट्वीट किया, “बहुत दुख के साथ, राष्ट्र को हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी के निधन की ख़बर मिली है। मैं पूरे देश के साथ उन्हें श्रद्धांजलि देता हूं। शोकाकुल परिवार और दोस्तों के साथ मेरी संवेदनाएं हैं।”
With great sadness, the nation receives the news of the unfortunate demise of our former President Shri Pranab Mukherjee.
I join the country in paying homage to him.
My deepest condolences to the bereaved family and friends. pic.twitter.com/zyouvsmb3V
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 31, 2020
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