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वीडियो देखिये, प्रोफेसर का आरोप चार महीने की तनख्वाह दिए बगैर कॉलेज ने निकाला, प्रबंधन ने कहा ऐसी कोई बात नहीं
September 23, 2020
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कोरोना महामारी के समय हम हर क्षेत्र में मंदी देख रहे हैं. सरकार ने इस समय भी लॉकडाउन शुरू होते के साथ अपनी तरफ से कई सारी योजनाएं लाइ और नियम बनाये जिनसे आम नागरिक जो निजी क्षत्र में काम कर रहे हैं उन्हें परेशानी न हो. प्रधानमंत्री ने खुद लोगों से अनुरोध किया कि निजी संस्थाएं अपने कर्मचारियों का वेतन न काटें.
हालाँकि ज़मीनी हक़ीक़त हर स्तर पर थोड़ी अलग है. कई सारे ऐसे निजी संस्थाएं हैं जो ऐसा नहीं कर रहे. इनमें लघु उद्योग, कारखाने, शिक्षण स्थान भी शामिल है.
शिक्षा के क्षत्र में ही देखे फिलहाल सभी स्कूल कॉलेज बंद हैं. छात्रों की क्लासेज ऑनलाइन कराइ जा रही है. पेरेंट्स का कहना है कि स्कूल कॉलेज हमसे पूरी फीस ले रहे हैं जो कि इस समय सही नहीं है और शिक्षण संस्थान अपने शिक्षकों का हवाला दे रही हैं कि इन्हें शिक्षकों को वेतन देना होता है.
मगर उस हालत में आदमी क्या करे जब शिक्षण संस्थान बच्चों से फीस ले और कुछ शिक्षकों को महीनों तक आधी सैलरी पर काम करवाए और कुछ को सैलरी मिले ही नहीं?
ऐसा ही मामला कानपूर की एक्सिस एजुकेशनल सोसाइटी में सामने आया है. आरोप है कि मैनेजमेंट ने मार्च महीने से ही शिक्षकों को बिना किसी नोटिस के उनका वेतन आधा कर दिया.
बिना किसी पूर्व नोटिस के वेतन आधा
तर्कसंगत से बात करते हुए इंस्टीट्यूट के पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर मोहम्मद इबनेन जो मैकेनिकल इंजीनियर हैं उन्होंने बताया कि लॉकडाउन शुरू होते ही कॉलेज ने बिना किसी पूर्व नोटिस के प्रोफेसरों के वेतन आधा काट लिए. चूँकि वेतन पहले भी लेट आया करते थे, तो इस बार आधा आने पर लगा कि कोरोना के मद्देनज़र किया गया है और फिर इसकी भरपाई हो जाएगी.
मगर जून, जुलाई महीने में सैलरी आयी ही नहीं. अगस्त में फिर से आधे महीने की सैलरी आयी. जब मोहम्मद इबनेन ने मैनेजमेंट से बकाया सैलरी के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि बकाया जैसी कोई बात ही नहीं थी. मोहम्मद इबनेन के अनुसार बिना किसी आधिकारिक नोटिस के उनके साथ अन्य प्रोफेसरों की सैलरी भी काट ली गयी.
मोहम्मद इबनेन का कहना है कि मैनेजमेंट जब बिना नोटिस के सैलरी काट रही है और बचे हुए पैसे हमें वापस मिलेंगे या नहीं इसके बारे में भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे रही तो शंका होती है. आधे पैसे पर काम करने के साथ दबाव भी बढ़ता जा रहा था. इसी कारण से उन्होनें 1 सितम्बर को कॉलेज से इस्तीफा दिया. कॉलेज ने भी बिना किसी नोटिस पीरियड और बकाया राशि का भुगतान किये बगैर इस्तीफा मंज़ूर कर लिया. इबनेन को 6 महीने में सिर्फ 4 महीने की आधी सैलरी मिली है और जो शिक्षक अभी वहां काम कर रहे उन्हें 6 महीने में 5 महीने की आधी सैलरी मिली है.
कॉलेज में अभी कई शिक्षक ऐसे है जिन्होंने आधे वेतन पर काम करना चालू रखा है. कुछ को जून जुलाई की सैलरी भी नहीं मिली है. कुछ ऐसे भी है जिन्होनें कॉलेज छोड़ दिया है. मगर उनका पूरा सेटलमेंट अभी नहीं हुआ है. कॉलेज खुलने के बाद No Dues Certificate पर हस्ताक्षर करने के बाद कहा गया है कि बकाया मिलेगा.
मगर आधिकारिक तौर पर ऐसा कोई भी सर्कुलर चाहे फीस आधी करने के बारे में चाहे बकाया राशि के भुगतान के बारे मे प्रोफेसरों को नहीं मिली है.
तर्कसंगत ने जब एक प्रोफेसर से पुछा कि उन्होनें ऐसी अनियमितता के लिए कॉलेज में आवाज़ क्यों नहीं उठाई? उनका कहना था कि ‘हम शिक्षक है अगर हम धरने पर बैठे तो बच्चों को कौन पढ़ायेगा? सभी की अपनी मजबूरियां है इस लॉकडाउन में घर का खर्च चलाना है ऐसे में प्रोटेस्ट धरने में पड़ने के बजाय हम दूसरी नौकरी खोज लेना बेहतर समझते हैं.’
छात्रों से फीस भी लिए गए
मोहम्मद इबनेन के मुताबिक मज़े की बात ये है कि जहाँ कोरोना महामारी की दुहाई देकर जब कॉलेज शिक्षकों की सैलरी में एक तरफ कटौती कर रहा था. दूसरी तरफ बच्चों से फीस नियमित रूप से भरने को कहा जा रहा था. स्टूडेंट्स से फीस भरवाने का दबाव भी मैनेजमेंट की तरफ से लगातार बना हुआ था. इसकी पूरी जानकारी प्रोफेसर के पास इसलिए थी क्यूंकि फीस जमा करने वाले स्टूडेंट्स के नाम और जमा की गयी राशि का ब्यौरा इन्हें ही बना के देना होता था.
पॉलिटेक्निक के सेकंड ईयर के एक स्टूडेंट ने अपने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि हमने अपने पिछले साल के सेशन की पूरी फीस दे रखी. जो की जुलाई से जुलाई तक का होता है. इस साल की सेशन का फीस भी हम भर रहे हैं. फिर ऐसे में हमारे प्रोफेसर को सैलरी न देने से और उनके कॉलेज छोड़ के जाने से पढाई पर असर हो रहा है.
स्टूडेंट्स ने जब मैनेजमेंट से पूछ कि कुछ प्रोफेसर छोड़ कर क्यों जा रहे हैं, तो जवाब मिला की उनके खिलफ शिकायतें आयी थी. मगर स्टूडेंट्स ने अपने समूह में पूछने पर किसी ने भी इस बात को नहीं माना.
लॉकडाउन में ऑनलाइन क्लास और वर्कशॉप का भार
संस्थान के शिक्षकों का कहना है कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद और अनियमित सैलरी देखते हुए कई. सारे साथी प्रोफेसर छोड़ दिया। ऐसे में मौजूदा प्रोफेसर पर कार्यभार बढ़ गया. नियमित क्लासेस के अलावा एक्स्ट्रा क्लासेज लेने पड़े. मैनेजमेंट ने कई तरह के वर्कशॉप अटेंड करना प्रोफेसर के लिए अनिवार्य कर दिया. जिनमें से कुछ मुफ्त थे और कुछ के लिए पैसे लगते थे.
शिक्षक के निलंबन के बाद यूनिवर्सिटी ड्यूटी
मोहम्मद इबनेन ने तर्कसंगत को बताया कि ताज्जुब की बात है कि ‘बकाया सैलरी मांगने पर मुझे इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया. मगर इसके बाद यूनिवर्सिटी की परीक्षा की ड्यूटी में मेरा नाम भी कॉलेज को भेजा गया. मैंने यूनिवर्सिटी से जब बात कर बताया कि मुझे कॉलेज से निकाल दिया गया है, इस पर यूनिवर्सिटी ने मुझे कॉलेज जा कर अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करने को कहा, जो मैंने किया भी. मगर कॉलेज में मुझे कुछ घंटे बिठाने के बाद मुझे मुझे वापस भेज दिया गया.’
जिसके बारे में उन्होनें विस्तार से अपने वीडियो में बताया है.
तर्कसंगत से बात करते हुए एक महिला पूर्व प्रोफेसर ने भी इसी तरह की बात बताई. उनका कहना था कि साल 2019 में कॉलेज ने उनसे तीन महीने काम करा कर केवल दो महीने की सैलरी दी है. अपनी बकाया राशि के लिए उन्होनें कॉलेज में कई सारे मेल्स भेजे मगर उनका सही से जवाब आज तक नहीं आया. पैसे भी नहीं मिले.
कॉलेज ने आरोपों को निराधार बताया
तर्कसंगत से बात करते हुए डीन एडमिनिस्ट्रेशन प्रसून तिवारी ने बताया कि इस तरह की भ्रामक जानकारी फैलाई जा रही है. उन्होनें आगे कहा ‘कोरोना और लॉकडाउन के समय सभी परेशानी से गुज़र रहे हैं, हमने सरकार के दिशानिर्देशों का पालन हर तरह से पूरा करने का प्रयास किया है. अगर कोई अपने निजी कारणों से कॉलेज छोड़ कर जाता है तो उसकी जिम्मेदारी हम नहीं ले सकते. हमारे जवाबदेही यूनिवर्सिटी की तरफ है और हमने यूनिवर्सिटी को अपनी ओर से जवाब दे दिया है.’
प्रसून ने आगे बताया कि ‘इस वक़्त में कॉलेज के अपने खर्चे भी हैं जो लॉकडाउन के बावजूद भी नहीं रुके हैं. हमें उन सारे चीज़ों को भी मैनेज करते हुए आगे बढ़ना है और चाहते हैं कि कॉलेज जल्द से जल्द खुले ताकि बच्चों की पढ़ाई सुचारु रूप से शुरू की जाए. कई सारे अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों की फीस बकाया है ऐसे में वो अगर परीक्षा पास हो कर चले गए तो उनका बकाया फीस कौन देगा? हम इन सब मुश्किलों के बावजूद हर प्रयास कर रहे हैं जिससे शिक्षकों और विद्यार्थियों को कोई परेशानी न हो.
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