
मेरी कहानी
मेरी कहानी : अपने बच्चों को गोद में उठाने के बाद मैंने महसूस किया कि उन यात्रियों ने क्या महसूस किया होगा
Image Credits: Humans Of Bombay
October 6, 2020
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जब स्वाति रावल को भारत से विदेश में गए फंसे यात्रियों को बचाने के लिए उड़ान भरने के लिए कहा गया, तो वह केवल अपने बच्चों की सुरक्षा के बारे में सोच सकती थीं। उड़ान से लौटने के बाद , वह अपने बच्चों को गले नहीं लगा सकती थी क्योंकि उन्हें घर पर सोशल डिस्टैन्सिंग और कई सारे प्रोटोकॉल को फॉलो करना पड़ेगा।
भले ही इस बात ने उन्हें दुखी कर दिया, लेकिन वह महामारी के बीच अपने कर्तव्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ी।
“20 मार्च को, मुझे अपनी टीम से यह कहते हुए फोन आया कि मुझे अगले दिन दिल्ली से रोम जाने वाली एक फ्लाइट को ले जाना है। यह 263 भारतीय यात्रियों को रोम से वापस दिल्ली ले जाने के लिए एक रेस्क्यू उड़ान थी। मेरे पास उन्हें जवाब देने के लिए 5 सेकंड थे, और मैं उस वक़्त केवल अपने 5 साल के बेटे और 18 महीने की बेटी के बारे में सोच रही थी।
मुझे कुछ महीने पहले मेरी बेटी के बीमार पड़ने की मुश्किलें याद थी, और उसी वजह से मैं इस मिशन में जाने से झिझक रही थी। लेकिन उन 263 भारतीयों के बारे में सोचा जो कि अपने घर वापस जाने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मैंने हिम्मत जुटाई और कहा, ‘हां, मैं इस उड़ान को पूरा करुँगी।’
मैं अगले दिन ही निकल गयी अपने बच्चों को अलविदा कह के। जब मैं अपने क्रू के साथ प्लेन में सवार हुई तो मैंने महसूस किया कि यह मेरे जीवन की सबसे खराब शाम थी – क्यूंकि उस उड़ान में कोई यात्री नहीं था सिर्फ 8 घंटे का सन्नाटे से भरा सफर।
लेकिन रोम में यात्रियों को लेकर उड़ान भरने के बाद उसी प्लेन का वातावरण तुरंत बदल गया। थोड़े समय की लिए ही सही मगर ऐसा लगा कि महामारी कभी नहीं थी। लैंडिंग के बाद, यात्रियों ने विमान से उतरने से पहले हममृ शुक्रिया किया। एक यात्री ने यहां तक कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि कभी ऐसा भी होगा की उड़ान भर के घर आना कभी इतना कीमती होगा’। मुझे उसके अंदर परिवार के साथ दोबारा मिलने की उत्तेजना महसूस हो रही थी; आखिरकार, मैं भी वापस पास जा रही थी।
लेकिन जब मैं घर पहुंची तो चीज़ें पहले की तरह नहीं रह गयी थी। इस बार उड़ान के बाद मेरे परिवार में वापस आना हर बार से अलग था। जब मेरा बेटा मेरे मुझे गले लगाने के लिए दौड़ा, तो मुझे उसे रोकना पड़ा और उससे कहा, ‘मम्मा आपको गले नहीं लगा सकतीं।’ जब मेरी बच्ची ने मुझे देखा, तो उसके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान थी वो मेरी गोद में आना चाहती थी – लेकिन मेरे पति को उसे उठाकर मुझसे दूर ले जाना पड़ा। वह चीखी और चिल्लाई- ये देखकर मेरा दिल टूट गया।
मुझे अपने दोनों बच्चों से मिलने से पहले 14 दिनों के लिए अलग होना पड़ा। उन 14 दिनों में, मेरी बेटी मुझसे दूर नहीं रह सकी। उसे जब भी मौका मिलता वो मेरे कमरे में घुसने की कोशिश करती। यह हर दिन का एक खेल बन गया, जहाँ मैं दौड़ती और वह मुझे पकड़ने की कोशिश करती। यह उस 14 दिन की स्थिति को निपटने का सबसे अच्छा तरीका था। लेकिन उन 14 दिनों के बाद, जब मुझे आखिरकार अपने बच्चों को पहली बार गोद में उठाया तो मैंने महसूस किया कि उन यात्रियों ने क्या महसूस किया होगा – अपनों से दूर होने का दर्द, और अगर उस एहसास को खत्म करने के लिए मुझे और भी उड़ान भरने पड़े तो मैं उतनी ही उड़ान भरने के लिए तैयार हूं, जिससे मेरे साथी भारतीय अपने घर, सुरक्षित पहुँच सकें।”
कहानी: कैप्टेन स्वाति रावल
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