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कामधेनु आयोग ने तो गोबर चिप से रेडिएशन रोकने की बात कह दी, मगर वैज्ञानिकों ने पूछ डाला की ‘इसका प्रूफ क्या है बताओ?’
October 19, 2020
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क्या गाय के गोबर से ऐसा चिप बन सकता है जो मोबाइल फोन से निकलने वाले विकिरण को कम कर दे? ये एक ऐसा सवाल है जो इन दिनों सभी के जेहन में है. अब इस बीच वैज्ञानिकों ने भी इस मामले में सबूत मांगे हैं. बताते चलें कि हाल ही में राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के चेयरमैन वल्ल्भभाई कथीरिया ने कहा कि ये चिप मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडिएशन कम कर देती है और लोगों को कई बीमारियों से बचाने में सक्षम है।
#WATCH: Cow dung will protect everyone, it is anti-radiation… It's scientifically proven…This is a radiation chip that can be used in mobile phones to reduce radiation. It'll be safeguard against diseases: Rashtriya Kamdhenu Aayog Chairman Vallabhbhai Kathiria (12.10.2020) pic.twitter.com/bgr9WZPUxK
— ANI (@ANI) October 13, 2020
अब तकरीबन 600 वैज्ञानिकों ने सरकार से पत्र लाख कर मांग की है कि अगर उनके पास कोई साइंटिफिक प्रूफ है तो उन वैज्ञानिकों के साथ साझा करें। ‘इंडिया मार्च फॉर साइंस’ की मुंबई शाखा ने एक बयान में कहा कि वैज्ञानिकों ने यह भी जानकारी मांगी है कि इस संबंध में वैज्ञानिक प्रयोग कब और कहां हुए और मुख्य जांचकर्ता कौन था. उन्होंने यह भी जानकारी मांगी कि इस संबंधी अध्ययन के परिणाम कहां प्रकाशित हुए.
और तो और पत्र में आईआईटी-बॉम्बे, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च के साथ जुड़े वैज्ञानिकों ने भी सरकार से सवाल पूछे है।
अपने लिखे पत्र में वैज्ञानिकों ने कई सारे सवाल पूछे हैं. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार पत्र में लिखा कि “आपने यह कहते हुए अपना भाषण जारी रखा कि आपके सभी कथन ‘वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हैं’। उक्त वैज्ञानिक प्रयोग कहाँ और कब किए गए? प्रमुख जाँचकर्ता कौन थे? निष्कर्ष कहाँ प्रकाशित किए गए थे? यदि यह एक शोध पत्रिका में था, तो क्या उसकी समीक्षा की गई? क्या डेटा और प्रायोगिक विवरण प्रदान किया जा सकता है? ” भारतीय एक्सप्रेस द्वारा उद्धृत पत्र ।
वैज्ञानिकों ने इस रिसर्च के लिए हुआ फंडिंग पर भी सवाल उठाया है जो इस अनुसंधान के लिए दिया गया है और उस फंडिंग एजेंसी का विवरण भी माँगा।
“यदि आपके पास अपने दावों का समर्थन करने के लिए वैध डेटा नहीं है, तो आपकी प्रेस कॉन्फ्रेंस अंधविश्वास और छद्म विज्ञान के प्रचार के बराबर है, जो संविधान के अनुच्छेद 51A (एच) के खिलाफ जाता है जो कहता है कि ‘यह हर व्यक्ति का कर्तव्य होगा भारत का नागरिक वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करने के लिए ‘, पत्र में ऐसा आगे लिखा है। वैज्ञानिकों ने कहा कि यदि दावे बिना किसी वैज्ञानिक समर्थन के किए गए हैं, तो इसे सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के रूप में माना जा सकता है, विशेषकर ऐसे समय में जब देश का हर क्षेत्र वित्त पोषण के लिए संघर्ष कर रहा है।
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